scriptGround Report: श्रमिकों ने कहा- गांव से बाहर आकर खाना और पहनना ही कमाया, अब नहीं आएंगे घर से लौटकर | UP workers returning to home in lockdown | Patrika News
मेरठ

Ground Report: श्रमिकों ने कहा- गांव से बाहर आकर खाना और पहनना ही कमाया, अब नहीं आएंगे घर से लौटकर

Highlights

हरियाणा से चले पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रवासी श्रमिकों की व्यथा
देर रात मेरठ की सीमा में घुसने को लेकर पुलिस से हुई नोकझोंक
कहा- शुरू में तो मिला कच्चा राशन, उसके बाद बढ़ गई दिक्कतें

 

मेरठMay 14, 2020 / 12:22 pm

sanjay sharma

meerut
मेरठ। कोरोना संक्रमण के दौरान लगाए गए लॉकडाउन में फंसे श्रमिकों का धैर्य अब जवाब देने लगा है। स्वयं सेवी संस्थाओं ने खाना बंद कर दिया। जो दो-चार किलो कच्चा राशन मिला था वह भी एक महीने में खत्म हो गया तो भूखे पेट परदेस में रहकर करेंगे क्या, अब बुझे मन और बड़े अरमान से अपने गांव की डगर पर निकल पड़े हैं। यह व्यथा उन मजदूरों की है जो कि हरियाणा से पूर्वी यूपी साइकिलों से चल दिए। साइकिल खरीदने के लिए भी जेब में पैसे नहीं थे तो गांव से परिजनों ने गहनों को गिरवी रख एकाउंट में रुपये डाले, तब जाकर पुरानी साइकिल खरीद सके। इन मजदूरों की संख्या करीब 50 के आसपास है। इनमें से कोई प्रयागराज तो कोई बनारस का रहने वाला है। कुछ जौनपुर और भदोही के भी है। सभी चलकर एक-दूसरे का हौसला बने हुए हैं। इन मजदूरों को भरोसा है कि एक-दो दिन में मंजिल तो पा ही लेंगे।
यह भी पढ़ेंः लॉकडाउन में शादी की 50वीं सालगिरह नहीं मना पा रहे थे, अचानक पहुंची पुलिस और दंपती को दिया ये तोहफा

कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन में फंसे लोगों का पलायन अब भी जारी है। साधन नहीं मिलने के कारण ये लोग पैदल और साइकिलों से ही अपने घर जा रहे हैं। जिनमें बुजुर्ग, बच्चे, महिलाएं और युवा शामिल हैं। पलायन करने वालों में अधिकतर दिहाड़ी मजदूर हैं, जिनके सामने अब रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इनका कहना है कि वे अब लौटकर नहीं आएंगे। गांव में चाहे जितना संकट झेलना पड़े। इतने साल हो गए यहां रहते, आज पता चला कि सिवाय खाने-पहनने के कुछ नहीं कमाया। जब पेट ही पालना था तो गांव में रहकर ही पाल लेते। इस लॉकडाउन की शुरुआत में कुछ दिन खाना मिला, लेकिन अब तो उसकी भी उम्मीद नहीं है। आखिर कोई कितने दिन तक खाना खिलाएगा। सरकार मजदूरों के लिए रोटी और प्रवासी श्रमिकों को उनके घर तक पहुंचाने के दावे तो कर रही है, लेकिन आज तक उनके पास तक नहीं पहुंची। मजदूर इमरान का कहना है कि वह पानीपत में हेल्पर का काम करता है। जौनपुर का रहने वाला है। अब उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा तो 500 रूपये में साइकिल लेकर अपने घर चल दिया। हरदोई का राजेश ने कहा कि मजदूरी छूटने के बाद कुछ दिन तक खाना मिला, लेकिन वह भी बंद हो गया। कुछ ही कहानी बब्बन, गुलाम साबिर समेत कई श्रमिकों की भी है।
यह भी पढ़ेंः मेरठ में कोरोना संक्रमण से 15वीं मौत, पीएसी के चार जवानों समेत मिले 12 नए मरीज

गिरवी रखे गहने फिर मिली साइकिल

मजदूरों का कहना है कि उनके पास साइकिल खरीदने के भी पैसे नहीं थे। गांव में परिजनों ने गहने गिरवी रखे और उन पैसों को खाते में डलवाया। तब जाकर ये लोग पानीपत में साइकिल का इंतजाम कर सके। मजदूरों का कहना है कि पानीपत के गांव आसनकला के सरपंच ने उनसे आधार कार्ड की फोटो कापी ले ली। उनसे कागजों पर साइन करा लिए, लेकिन न तो राशन दिया और न कुछ खाने के लिए रुपये दिए।

Hindi News / Meerut / Ground Report: श्रमिकों ने कहा- गांव से बाहर आकर खाना और पहनना ही कमाया, अब नहीं आएंगे घर से लौटकर

ट्रेंडिंग वीडियो