रक्षा बंधन का पर्व मनाने वाली किन्नर चांदनी ने बताया कि किन्नर का कोई भाई नहीं होता है। वे तो आपस में ही एक-दूसरे को राखी बांधते हैं और मरते दम तक इस रिश्ते को निभाने का वचन लेते देते हैं। किन्नर चांदनी कहतीं हैं कि रक्षाबंधन के दिन वे सबसे पहले अपने इष्टदेव की पूजा करते हैं और लोगों की तरह ही इन्हें भी रक्षाबंधन का इंतजार रहता है। रक्षाबंधन के दिन सुबह वे अपने तीर्थ स्थान पर गए और वहां जाकर हवन इत्यादि कर सावन माह की विदाइ के लिए भगवान शिव की पूजा अर्चना की।
किन्नर समाज के कुछ लोग इस पर्व को भुजारिया पर्व भी कहते हैं। इस पर्व की तैयारी किन्नर समाज में 10 दिन पहले शुरू हो जाती है। इस दौरान गेंहू के दानों को छोटे-छोटे मिटटी के पात्रों में मिटटी में भरकर रख देते हैं। जब वो अंकुरित हो जाते हैं तो उसकी अपने समाज के नियमों से पूजा कर जल में प्रवाहित करते हैं।
किन्नर राधा का कहना है कि जब वह दो साल की थी उसके परिवार के लोग उसे किन्नर होने की वजह से कहीं छोड़ गया था। किसी ने किन्नर समाज के लोगों को जानकारी दी और वह मुझे अपने साथ ले गए। मेरी परवरिश मेरे किन्नर परिवार ने की है। यही मेरे माता-पिता हैं और भाई-बहन। मुझे नहीं पता मैं कहां और किस घर में पैदा हुई, इसलिए मुझे रक्षाबंधन पर किसी की याद नहीं आती। हम लोग आपस में ही रक्षाबंधन मनाते हैं।