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हाथ से निकल गया गन्ना मुद्दा
पष्चिम की सियासत की फसल गन्ने पर ही लहलहाती रही है। अब तक का इतिहास रहा है कि गन्ने के मुद्दे को जिसने भुनाया, वही सत्ता के शीर्ष के पर पहुंचा। रालोद भी गन्ने की राजनीति के बल पर ही प्रदेश से देश तक अपना राजनीति वजूद दिखा चुका हैं। लेकिन वर्तमान में भाजपा सरकार ने चीनी मिलों को समय पर चलाकर और किसानों का गन्ना मूल्य भुगतान समय से कराकर रालोद के साथ ही अन्य दलों के हाथों से यह मुद्दा खींच लिया है। रालोद को उम्मीद थी कि इस बार चीनी मिले देर से चलेंगी तो उसे अपने वोट बैंक में धार तेज करने का काम मिल जाएगा। लेकिन भाजपा ने रालोद की यह धार ही कुंद कर दी।
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किसानों से जुड़ने की कवायद
रालोद सुप्रीमो अजित सिंह 20 नवंबर के बाद से मेरठ सहित पश्चिम उप्र के अन्य प्रमुख जिलों में किसानों से संवाद स्थापित कर उनकी मंशा जानेंगे। इतना ही नहीं, वे इसी संवाद के बहाने गांव में भी रुकेंगे। इस काम में उनके पुत्र जयंत चैधरी भी उनके साथ शामिल रहेंगे। बतायाजाता है कि इस दौरान जयंत मुजफ्फरनगर और शामली में किसानों से मिलेंगे।
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सीटों के बंटवारे में होगा रालोद को नुकसान
गठबंधन होने की स्थिति में रालोद को सीटों के बंटवारे पर भी भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। पष्चिम में बसपा के अलावा सपा की स्थिति रालोद से अधिक मजबूत है। ऐसी स्थिति में दोनों दल नहीं चाहेंगे कि वह किसी भी हालात में अपनी जीत की उम्मीद को किसी और दल के हाथों में जाने दें। इस बात को रालोद सुप्रीमो अजित सिंह भी जानते हैं। इसलिए वे अभी से चुनावी तैयारी में जुट गए हैं। रालोद के राष्टीय महासचिव डा. मैराजुद्दीन कहते हैं कि पश्चिम में रालोद सीटों का बंटवारा अपनी शर्तों के आधार पर करेगी। उनका कहना है कि पश्चिम में रालोद की स्थिति मजबूत है। किसी भी दूसरे दल को अगर वह भाजपा को हराना चाहते है तो यहां पर रालोद से उसको हाथ मिलाना ही होगा।