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गरजे किसान, बोले नहीं माना जाएगा एनजीटी का फरमान जैन तीर्थ में हस्तिनापुर का महत्व जैन तीर्थस्थलों में हस्तिनापुर का अपना अलग ही महत्व है। भगवान ऋषभदेव के प्रथम पुत्र, प्रथम चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। राजा भरत की राजधानी हस्तिानपुर थी। इसके अलावा महाभारत से भी हस्तिनापुर का इतिहास जुड़ा हुआ है। जैन धर्म के 24 तीर्थकरों में से 16-17-18 वें तीन तीर्थकर श्री शांतिनाथ, कुुंथुनाथ और अरहनाथ का जन्म भी हस्तिनापुर में हुआ था। जैन धर्म के अनुसार करोड़ों वर्ष पूर्व यहां पर इन तीर्थकरों के चार-चार कल्याणक हुए थे और तीर्थंकर, चक्रवर्ती,
कामदेव इन तीन पदों के धारक। इन तीनों महापुरूषों ने हस्तिनापुर को राजधानी बनाकर यहां से छह खंड का राज्य संचालित किया था। जैन धर्मावंबियों के अनुसार दिल्ली और हस्तिनापुर तब एक ही माना जाता था। जवाहर लाल नेहरू ने भी अपनी किताब डिस्कवरी आफ इंडिया के पृष्ठ 107 पर इसका उल्लेख किया है। इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि आज जिसे हम दिल्ली के नाम से जानते हैं वह कभी हस्तिनापुर एवं इंद्रप्रस्थ कहलाता था। अतः दिल्ली और हस्तिनापुर को ही एक दूसरे के पूरक ही समझा जाता हैै। जम्बूद्वीप परिसर में ओम
मंदिर , भगवान वासुुपूज्य मंदिर, भगवान शांतिनाथ मंदिर के अलावा विद्यमान बीस तीर्थंकर मंदिर, सहस्त्रकूट मंदिर, भगवान ऋषभदेव मंदिर के दर्शन कर जैन धर्म के लोग अपने आप को धन्य मानते हैं।