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इस बेटी ने अब्दुल कलाम की पुस्तक ‘इगनाइटेड माइंड्स’ से प्रभावित पाया यह मुकाम जेल से छुड़ाए थे भारतीय सैनिक मेरठ से शुरू हुए 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में धन सिंह कोतवाल का नाम प्रमुखता के साथ लिया जाता है। सही मायनों में उन्हें मई 1857 की क्रांति का जनक कहा जाता है। धन सिंह कोतवाल गुर्जर बिरादरी से ताल्लुक रखते थे और मेरठ के पांचली गांव के निवासी थे। वह मई 1857 में मेरठ की सदर कोतवाली में तैनात थे। सदर बाजार कोतवाली के कोतवाल रहते हुए धनसिंह गुर्जर ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका था। धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में जेल पर हमला बोलकर चर्बीयुक्त कारतूसों को विरोध करने वाले 85 भारतीय सैनिकों समेत 836 कैदियों को छुड़ाया गया था।धन सिंह कोतवाल के आहवान पर उनके अपने गांव पांचली सहित गांव नंगला, गगोल, नूरनगर, लिसाड़ी, चुड़ियाला, डोलना आदि गांवों के हजारों लोग सदर कोतवाली में एकत्र हुए। धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में 10 मई 1857 की रात मेरठ में बनाई गई अंग्रेजों की नई जेल में बंद भारतीय सैनिकों और क्रांतिकारियों छुड़ा लिया गया और इसके बाद जेल में आग लगा दी थी।
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चार बेटियों के पिता ने मोदी आैर योगी से लगार्इ गुहार, अब तो घर से निकलना भी हो गया मुश्किल शाम से देर रात तक चला था कत्लेआम धन सिंह गुर्जर ने 10 मई 1857 गदर वाले दिन अंग्रेजों के खिलाफ भड़की क्रांतिकारी आग में अग्रणी भूमिका निभाई थी। एक पूर्व योजना के तहत भारतीय विद्रोही सैनिकों तथा कोतवाल धन सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा गठित कर क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया था। 10 मई 1857 की शाम करीब पांच से छह बजे के बीच सदर बाजार की सशस्त्र बल पुलिस और सैनिकों ने सभी स्थानों पर एक साथ विद्रोह कर दिया था। धन सिंह कोतवाल द्वारा निर्देशित पुलिस के नेतृत्व में क्रांतिकारी भीड़ ने देर रात तक सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में अंग्रेजों का कत्लेआम किया था।
किसान परिवार में जन्मे थे धन सिंह गुर्जर शहीद कोतवाल धन सिंह गुर्जर का जन्म 27 नवंबर 1814 को ग्राम पांचली खुर्द में किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम जोधा सिंह और माता का नाम मनभरी देवी था। उच्च शिक्षा प्राप्त कर पुलिस में भर्ती हो गए। ब्रिटिश हुकूमत में मेरठ शहर के कोतवाल बने। 1857 के विद्रोह की खबर सुनकर आस-पास के ग्रामीणाें को गुप्त संदेश भिजवाकर हथियारों के साथ एकत्र किए थे। धन सिंह गुर्जर के नेतृत्व में जेल का फाटक तोड़कर कैदियों को बाहर निकाला और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा दिया। 10 मई 1857 को पूरे दिन क्रांति चलती रही।
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चीनी मिलों से किसानों को मिली अब यह चेतावनी, विभाग भी रह गया हैरान चार जुलार्इ 1857 को शहीद हुए थे 4 जुलाई,1857 को प्रातः चार बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने तोपों से हमला किया। रिसाले में 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे। पूरे गांव को तोपों से उड़ा दिया गया। सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनमें से 46 लोग कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को बाद में फांसी की सजा दे दी गई। आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। पूरे गांव को लगभग नष्ट ही कर दिया गया। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फांसी की सजा दी गई और पूरे गांव को नष्ट कर दिया।