कांग्रेस की हालत भाजपा से कम बुरी नहीं है। रालोद का जब तक सपा और बसपा से गठबंधन नहीं हुआ था तब तक दोनों दल एक दूसरे के साथ गले में हाथ रख आगे बढ़ रहे थे। कांग्रेस की उम्मीद राष्ट्रीय लोकदल से थी और वह चाहती थी कि रालोद के
जयंत चौधरी कांग्रेस से गठबंधन करके कैराना से चुनाव लड़ें। जिससे परोक्ष रूप से कांग्रेस अपनी मजबूत उपस्थिति कैराना में उपस्थित कर सके। अपने इस राजनैतिक पैंतरे की बदौलत आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस सपा और बसपा पर तालमेल के लिए दबाव भी बना सकती थी, लेकिन रालोद के जयंत चौधरी ने जिस तरह से कांग्रेस को दरकिनार कर
अखिलेश यादव से गठबंधन कर राजनैतिक समझौता किया है उससे कांग्रेस मंझधार में फंस गई है।
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रेड लाइट एरिया सील करके चला अभियान, यह मिला यहां से गोरखपुर आैर फूलपुर चुनाव की तरह आसार अब कांग्रेस अलग से लड़ती भी है तो एक तो उस पर भाजपा विरोधी मतों को बांटने का आरोप लगेगा। ऐसी परिस्थिति में 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रदेश के क्षेत्रीय दलों का गठबंधन भी कांग्रेस को अपने से अलग कर सकता है। परेशानी यह भी है अगर कांग्रेस यहां पर अकेले चुनाव लड़ती है तो उसकी हालत गोरखपुर और फूलपुर की तरह हो जाएगी। जहां उसके उम्मीदवार कुछ हजार वोट ही पा सके थे। अलग से लड़कर और किसी मुस्लिम को उम्मीदवार बनाकर वह महागठबंधन या भाजपा को ज्यादा नुकसान नहीं कर पाएगी।
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छापेमारी टीम का खौफ है यहां, पहुंचने से पहले ही कटिया कनेक्शन उतरने लगे औपचारिक तौर पर अनुरोध का इंतजार अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए अब कांग्रेस चाहती है कि महागठबंधन उसे औपचारिक तौर पर ही कह दे कि वह अपना उम्मीदवार न खड़ा करे वह इस पर भी सहमत हो जाएगी। इस तरह से वह 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा और बसपा के गठबंधन में शामिल होने की संभावना भी बनाए रख सकती हैं। कांग्रेसी नेता और आईपीएल के चेयरमैन राजीव शुक्ला ने अपने सहारनपुर दौरे के दौरान हलांकि राजनैतिक बयान दिया था कि कांग्रेस विपक्ष को एकजुट करने में लगी है। कैराना में प्रत्याशी उतारने के मुद्दे पर उनका कहना था कि कांग्रेस 10 मई के बाद अपने प्रत्याशी की घोषणा करेगी। कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक इमरान मसूद का कहना है कि मुद्दा प्रत्याशी उतारने का नहीं है मुद्दा भाजपा को हराने का है। जो भाजपा को हराएगा हम उसके साथ खड़े हैं। हालांकि इस पर फैसला हाईकमान 10 मई को लेगा।