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बसपा सुप्रीमो मायावती के जन्मदिन पर शिवपाल सिंह यादव ने दी बधाई, जानिए क्या शुभकामनाएं दी उल्लेखनीय है कि योगेश वर्मा 2007 में विधायक रह चुके हैं। 2012 में वह बसपा से निष्कासित होने के बाद पीस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन हार का सामना करना पड़ा था। 2017 में फिर से वह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और दूसरे नंबर पर रहे। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते उन्हें पत्नी समेत बसपा से फिर निष्कासित कर दिया गया था। उसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि योगेश वर्मा किसी अन्य दल में जाएंगे।
अतुल प्रधान की अहम भूमिका बता दें कि योगेश वर्मा को सपा में लाने के लिए अखिलेश यादव के करीबी अतुल प्रधान ने अहम भूमिका अदा की है। इसके पीछे राजनीतिक समीकरण माने जा रहे हैं, क्योंकि अतुल प्रधान लंबे समय से सरधना से विधायकी का चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन भाजपा के संगीत सोम को हरा नहीं पा रहे हैं। जबकि हस्तिनापुर में योगेश वर्मा का जनाधार रहा, लेकिन वह हमेशा जिस पार्टी से लड़े उसने ही उन्हें बाहर कर दिया। राजनीतिक जानकारों की मानें तो सरधना में 50 हजार के करीब अनुसूचित जाति के मत हैं और दोनों ही विधानसभा एक-दूसरे से मिली हैं। ऐसे में योगेश वर्मा के पार्टी में शामिल होने का सबसे बड़ा फायदा सरधना सीट पर अतुल प्रधान को मिल सकता है।