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मेरठ में जातीय संघर्षः सबकुछ ठीक चल रहा था, सिर्फ इस ‘शब्द’ ने करा दिया उल्देपुर में बवाल दलितों ने इसलिए की थी महापंचायत बताते चलें कि बीती नौ अगस्त को गंगानगर के उल्देपुर में दलित और राजपूत जाति के ग्रामीणों के बीच खूनी संघर्ष हो गया था। जिसमें दलित जाति के युवक रोहित की मौके पर ही मौत हो गई थी। रोहित के पिता ने सात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट कराई थी। जिसमें अभी तक पूरी गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। मृतक रोहित के फरार चल रहे हत्यारोपियों की गिरफ्तारी न होने पर उसके पिता देवेन्द्र ने 101 गांवों के दलित लोगों के साथ गुरूवार को मेरठ कमिश्नरी पर महापंचायत का ऐलान किया था।
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यूपी के इस शहर में फैली जातीय हिंसा, अब तक एक युवक की मौत और दर्जनों घायल पुलिस प्रशासन ने रात से ही कर दी थी ही घेराबंदी पुलिस-प्रशासन ने जिले में धारा 144 लागू करते हुए महापंचायत को रोकने की पूरी घेराबंदी कर ली। पुलिस ने रणनीति बनाकर देर रात ही जिले की सभी सीमाओं को सील कर दिया था और जिले के सीमा में प्रवेश करने वाले लोगों से भरे वाहनों की चेकिंग तड़के से ही की जाने लगी थी। इधर महापंचायत स्थल कमिश्नरी को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया था। महापंचायत में शामिल होने जा रहे ग्रामीणों को जिले की सीमाओं से ही वापस लौटा दिया गया। हालांकि इसके बावजूद रोहित के पिता देवेन्द्र, अनुसूचित जाति के नेता सुशील गौतम और मेरठ काॅलेज के प्रोफेसर सतीश प्रकाश सहित करीब दो सौ ग्रामीण कमिश्नरी पहुंचने में कामयाब हो गए।
शुरू होते ही पांच हिरासत में लिए जैसे ही महापंचायत शुरू हुई तो मौके पर मौजूद सिटी मजिस्ट्रेट व सीओ सिविल लाइन रामअर्ज, सीओ कोतवाली दिनेश शुक्ल और सीओ ब्रहमपुरी अखिलेश भदौरिया ने सख्ती दिखाते हुए फोर्स के मदद से पंचायत कर रहे लोगों को वहां से हटाना शुरू कर दिया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों की पुलिस से तीखी झड़प हुई। झड़प के दौरान पुलिस ने सुशील गौतम सहित पांच लोगों को हिरासत में लेकर थाने भेज दिया। पुलिस ने ग्रामीणों को तितर-बितर करते हुए मात्र आधे घंटे में पंचायत समाप्त करा दी। कार्यवाहक एसएसपी राजेश कुमार का दावा है कि जिले में धारा 144 लागू होने के कारण महापंचायत नहीं होने दी गई।
महापंचायत न होने देने से दलितों में आक्रोश दूसरी ओर दलित महिलाओं में महापंचायत रोकने से प्रशासन के खिलाफ आक्रोश है। महापंचायत में आई दलित महिलाओं ने कहा कि प्रजातंत्र में अब अपनी बात भी हम नहीं रख सकते। यह तो दलित समाज का अपमान है।