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सुरक्षा में लगी पीएसी पिकेट के बचे खाने पर निर्भर हो गया है गवाह का परिवार! जनपद के वोटर मायूस बात चाहे 2014 में हुए आम चुनाव की हो या फिर 2017विधानसभा चुनाव की। दोनों में यहां के वोटरों ने भाजपा पर भरोसा करते हुए उसके उम्मीदवारों को जीत दिलाई। उम्मीद थी कि दोनों जगह मंत्रिमंडल में यहां के जनप्रतिनिधि को प्रतिनिधित्व मिलेगा, लेकिन हुआ इसका उल्टा। प्रतिनिधित्व मिलने की बात तो दूर बेचारे उपेक्षा का दंश और झेल रहे हैं। पहली बार लोक सभा 2009 चुनाव में राजेन्द्र अग्रवाल ने जीत दर्ज की थी, तो दूसरी बार भी सांसद राजेन्द्र अग्रवाल ही जीते। इस बार देश में भाजपा की सरकार बनने के बावजूद राजेंद्र अग्रवाल को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली।
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‘लेडी सिंघम’ ने थानाध्यक्ष को सबके सामने लिया आड़े हाथों, अब व्यापारियों ने भी कह दिया यह… योगी सरकार में थीं उम्मीदें पिछले साल योगी सरकार में जनपद के लोगों को उम्मीद थी कि हर हाल में जनपद के चुने विधायकों को प्रदेश प्रतिनिधित्व मिलेगा, लेकिन इस पर मेरठ को कुठाराघात सहना पड़ा। हर कोर्इ यह नहीं समझ पा रहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी टीम बनाने में कौन सा फार्मूला अपना रहे हैं, क्योंकि मेरठ की जनपद की सात विधानसभा सीटों में से छह भाजपा विधायक हैं। इनमें सरधना से
संगीत सोम जैसे विधायक भी हैं, जिनमें देश की राजनीति को बदलने का दमखम है, उन्हें भी योगी सरकार से अलग रखा गया। सत्यप्रकाश अग्रवाल, साेमेंद्र तोमर, सतबीर त्यागी जैसे युवा व अनुभव का मिश्रण भी है, लेकिन ये योगी सरकार की टीम में शामिल क्यों नहीं हो पाए, यहां पार्टी आैर लोगों के लिए यक्ष प्रश्न बना हुआ है।
इनकी है यह खासियत किठौर विधानसभा में भाजपा ने पहली बार जीत दर्ज की है। सत्यबीर त्यागी ने सपा के दमदार नेता और पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर को हराया था। सरधना में सपा व बसपा के मजबूत उम्मदवारों को हराते हुए संगीत सोम हिन्दुत्ववादी के रूप में उभरकर सामने आए। पिछले पांच साल में वह भाजपा के फायरब्रांड नेता के रूप में उनकी पहचान बनी है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी चार बार शहर विधायक रह चुके हैं, लेकिन पिछली बार नहीं जीत पाए थे। उन्हें भी प्रदेश प्रतिनिधित्व में मुनासिब जगह नहीं मिली। कैंट विधायक सत्यप्रकाश अग्रवाल तीसरी बार यहां से विधायक बने हैं।
आरएएस गतिविधि का प्रमुख केंद्र मेरठ जनपद भाजपा का गढ़ है, इसका बेहतरीन उदाहरण आरएसएस के कार्यक्रम ‘राष्ट्रोदय’ से अलग कोर्इ नहीं हो सकता। आरएसएस के प्रांत संघ की प्रमुख गतिविधियों के चलते वेस्ट यूपी में मेरठ प्रमुख केंद्र बन गया है। आरएसएस आैर भाजपा के बड़े कार्यक्रमों की सफलता यही साबित करती है कि यहां संघ आैर पार्टी के नेताआें में प्रदेश प्रतिनिधित्व का माद्दा है, लेकिन इन पर भरोसा नहीं किया गया।
अब होने लगी गुटबाजी भाजपा सांसद व विधायक को केंद्र व प्रदेश में प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से पार्टी गुटबाजी बढ़ने लगी है। नेता अलग-अलग गुच्छों में
काम कर रहे हैं आैर एक-दूसरे की टांग खींचने में जुट गए हैं। इसकी वजह यह है कि भाजपा नेताआें का कद लगभग एक-सा होना है, अगर किसी को केंद्र या प्रदेश प्रतिनिधित्व मिल जाता, तो सब उसके पीछे होते। यही वजह रही कि पिछले साल निकाय चुनाव में मेयर पद पर भाजपा उम्मीदवार की हार गुटबाजी का हिस्सा बनी। इसलिए भाजपा हार्इकमान को बेहद जरूरत है कि वह यहां के प्रतिनिधियों को दिल्ली या लखनउ तक का सफर तय कराए।
इन्होंने एेसा कहा इस मुद्दे पर सीधे कुछ न कहते हुए भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कहा कि एेसा नहीं है, समय-समय पर मेरठ को उसके कद के हिसाब से देश व प्रदेश में प्रतिनिधित्व मिलता रहा है। इसी तरह कैंट विधायक सत्यप्रकाश अग्रवाल ने भी प्रश्न काे टालते अंदाज में कहा कि मेरठ के कार्यकर्ताआें व जन-प्रतिनिधियों को भाजपा का
प्यार मिलता रहा है।