scriptवेस्ट यूपी में हो रहे जातीय संघर्ष से 2019 में इस पार्टी के लिए बनेगी बड़ी मुसीबत | bjp in west up create big trouble ethnic conflict for 2019 election | Patrika News
मेरठ

वेस्ट यूपी में हो रहे जातीय संघर्ष से 2019 में इस पार्टी के लिए बनेगी बड़ी मुसीबत

पिछले डेढ़ साल में बदले हैं वेस्ट यूपी के हालात

मेरठAug 10, 2018 / 11:25 am

sanjay sharma

meerut

वेस्ट यूपी में हो रहे जातीय संघर्ष से 2019 में इस पार्टी के लिए बनेगी बड़ी मुसीबत

मेरठ। पश्चिम उत्तर प्रदेश में जातीय संघर्ष से कराह रहा है। खासकर सहारनपुर और मेरठ। पश्चिम के इन दो जिलों में अब तक कई जातीय संघर्ष हो चुके हैं। जिनमें कई लोग मारे गए हैं। मारे गए लोगों में अधिकांश लोग दलित हैं। जातीय संघर्ष में दलितों के मारे जाने से सर्वाधिक नुकसान अगर किसी दल को होता है तो वह है सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी। 2014 में केंद्र में भाजपा आयी तो उसे पश्चिम उप्र से बड़ी सफलता मिली थी। इसका कारण मुजफ्फरनगर दंगा था। जिसने वोटों का ध्रुवीकरण किया और चुनाव दो वर्गों हिन्दू-मुस्लिम में बंटकर रह गया था, जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिला। वहीं प्रदेश में 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो भी पार्टी इसका लाभ लेने में सफल रही थी, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। खासकर प्रदेश में पश्चिम उप्र को लेकर भाजपा अधिक सतर्क हुई है।
यह भी पढ़ेंः मेरठ में जातीय संघर्षः सबकुछ ठीक चल रहा था, सिर्फ इस ‘शब्द’ ने करा दिया उल्देपुर में बवाल

जातीय संघर्ष से बन-बिगड़ रही राजनैतिक परिस्थिति

पश्चिम उप्र में जातीय संघर्ष से राजनैतिक परिस्थितियां बन-बिगड़ रही हैं। इन परिस्थितियों का लाभ जहां बसपा और सपा को है वहीं भाजपा को इसका तगड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। पश्चिम उप्र में दल के लिहाज से भाजपा के सर्वाधिक सांसद और विधायक मौजूद हैं। ऐसे में पार्टी के ये सांसद और विधायक अपने इलाके में इस तरह के संघर्ष रोकने में नाकाम साबित हो रहे हैं।
यह भी देखेंः यूपी के इस शहर में फैली जातीय हिंसा, अब तक एक युवक की मौत और दर्जनों घायल

भाजपा को भुगतने पड़ेंगे गंभीर नतीजे

दलित चिंतक डा. सतीश के अनुसार भाजपा सरकार में होने वाली जातीय हिंसा का सबसे अधिक नुकसान इसी पार्टी को होगा। उनका कहना है कि जो भी जातीय हिंसा हो रही हैं उनमें अधिकांश दलितों से ही संबंधित है। उन्होंने कहा ऐसा लगता है कि कुछ लोग दलितों को टारगेट किए हुए हैं। इन जातीय हिंसा में मरने वाले लोगों में भी दलित हैं। 2017 से अब तक हुई जातीय हिंसा में पांच दलितों की मौत हो चुकी है। नाम न छापने की शर्त पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि भारतीय जनता पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग हर बार ऐसी चुनौती के बाद एक नई राह निकालती है। 1991 में सोशल इंजीनियरिंग और साम्प्रदायिकता की आक्रमक पैकेजिंग के बावजूद जब भारतीय जनता पार्टी 1993 में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और मुलायम सिंह यादव के बीच के राजनीतिक समझौते को सत्ता में जाने से नहीं रोक सकी, तब भारतीय जनता पार्टी ने इस गठबंधन को बेमेल और जातिवादी साबित करने के लिए सोशल इंजीनियरिंग के अपने फॉर्मूले को और विस्तारित किया। गुजरात में अमर सिंह चौधरी ने पिछड़ों, दलितों के साथ मुसलमानों के बीच राजनीतिक समझौते की राह निकाली तो वहां भारतीय जनता पार्टी को सबसे पहले इसकी चुनौती मिली। इसी राजनीतिक समझौते की उपलब्धि के तौर पर अमर सिंह चौधरी गुजरात में 1985 से 1989 के बीच राज्य के आठवें मुख्यमंत्री बने थे। भाजपा के पास 2019 में बेमेल हो रहे गठबंधन की काट का पूरा सूत्र है।
यह भी पढ़ेंः बड़ी खबरः बच्ची से दुष्कर्म की कोशिश के बाद राजपूत समाज के लोगों ने दलित बस्ती पर हमला बोला, आधा दर्जन से ज्यादा लोग घायल, घरों में तोड़फोड़

समय रहते भरेंगे घाव तो होगा लाभ

भाजपा ने समय रहते अगर दलितों के घाव नहीं भरे तो उसको भारी नुकसान होगा। पश्चिम उप्र की 12 संसदीय सीटों पर दलितों की मौजूदगी को कोई भी पार्टी नकार नहीं सकती। वर्तमान में ये सभी सीटें भाजपा के खाते में हैं। भाजपा समय रहते दलितों के घाव पर मरहम लगाएगी तो ही वह इस क्षेत्र से लाभ की उम्मीद कर सकती है।

Hindi News / Meerut / वेस्ट यूपी में हो रहे जातीय संघर्ष से 2019 में इस पार्टी के लिए बनेगी बड़ी मुसीबत

ट्रेंडिंग वीडियो