एक साल में इतनी बड़ी गिरावट से मंडियों, कृषि उत्पाद से जुड़े व्यापारियों और किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं हैं। मंडी से बाहर कृषि उत्पाद बेचने वाले किसानों को फसल का उचित दाम न मिलने की शिकायतें पहले से हैं। वहीं कुछ किसान और व्यापारी इसे नए कृषि कानूनों से जोड़ रहे हैं। उनका मानना है कि केंद्र सरकार के नए नियम मंडियों से जुड़े किसानों और व्यापार के अनुकूल नहीं हैं।
नए कृषि कानूनों में सरकार ने व्यापारियों को अधिक भंडारण की छूट दी है, वहीं किसानों को अपनी फसल मंडियों से बाहर कहीं पर भी बेचने का अधिकार दिया है। लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में कृषि उत्पादों की आवक और आय पर इसका बड़ा असर पड़ा है।
सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक पहले के मुकाबले मंडी में माल की आवक और शुल्क प्राप्ति में 50 प्रतिशत की गिरावट आई है। वर्ष 2019-20 में प्रदेश की समस्त मंडी समितियों से सरकार को 1359 करोड़ रुपये मंडी शुल्क के रूप में मिले था। वित्तीय वर्ष 2020-21 में यह घटकर 620 करोड़ रुपये रह गए। जबकि उस दौरान कोरोना संक्रमण अपने पीक पर था और मंडियों के खुलने और बंद होने की समय सीमा निर्धारित थी।
मंडी समिति के सचिव विजिन बालियान ने बताया कि मंडी में आवक गिरी है। मंडी शुल्क भी कम हुआ है। कई व्यापारी मंडी से बाहर व्यापार करने लगे हैं। कुछ व्यापारियों ने अपने लाइसेंस सरेंडर करने के लिए आवेदन किए हैं।
मेरठ सहित पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पड़ा असर पश्चिमी यूपी के मेरठ मंडल की मेरठ मंडी समिति सहित 22 मंडियों से सरकार को वर्ष 2019-20 में लगभग 96 करोड़ रुपये मंडी शुल्क के रूप में मिले थे। जो अब अब वित्तीय वर्ष 2020-21 में घटकर 46 करोड़ रह गए हैं। कुछ व्यापारियों ने तो यहां तक आशंका जताई है कि इन हालात में मंडियों पर ताला लटक जाएगा। क्योंकि जिनता खर्च मंडी समितियों में स्टाफ के वेतन पर किया जा रहा है, मंडी शुल्क से उतनी आय नहीं हो रही है।
मंडियों के अंदर भी चल रहा खेल समिति की आय पर भी असर सूत्रों के अनुसार मंडी के कुछ व्यापारी मंडी के अंदर अपनी दुकान पर आने वाले कृषि उत्पाद की खरीद फरोख्त करने के बाद भी इस कारोबार को मंडी से बाहर दिखा रहे हैं। इसका सीधा असर मंडी समिति की आय पर पड़ रहा है। इस खेल पर अंकुश लगाना भी जरूरी है।
कृषि आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा बताते हैं कि नए कृषि कानूनों ने मंडी में व्यापार को समेट दिया है। ये कानून न किसान के हित में हैं और न व्यापारी के। किसान अपने हित की ही नहीं बल्कि व्यापारी हित की भी लड़ाई लड़ रहे हैं।