scriptयहां आदिशक्ति और वन दुर्गा के रूप में पूजी जाती हैं मां सीता, पूरी करती हैं मुरादें    | Maa Sita worship in Navratri as Aadishakti and van durga in mau vandevi temple | Patrika News
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यहां आदिशक्ति और वन दुर्गा के रूप में पूजी जाती हैं मां सीता, पूरी करती हैं मुरादें   

खुदाई में निकली थी साक्षात मां की मूर्ति, जानिए मऊ के वनदेवी मंदिर का इतिहास… त्रेता युग में ​​​​यह स्थान महर्षि बाल्मिकी की तपोस्थली भी रही है…देश भर के लिए आस्था का केंद्र है यह स्थान…

मऊOct 03, 2016 / 06:59 pm

ज्योति मिनी

maa sita

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मऊ. कहते हैं कि त्रेता युग में भगवान राम ​​​​​ महर्षि बाल्मिकी के आश्रम ​​​​​ गये थे, पुराणो, ऐतिहासिक साक्ष्यों-अभिलेखों और रामायण में उद्विर्त, छन्दों ,किवदन्तियों से यह पता चलता है कि मऊ जिले के वनदेवी धाम​ को लोग​ यू ही नहीं देश में आस्था ​के केन्द्र रुप में पूजते हैं, बल्कि इस स्थान पर वनदेवी के रुप में (मां सीता ​​)​ और माँ वनदुर्गा की एक साथ प्रतिमा स्थापित है​।

​​बताते हैं कि त्रेता युग में ​​​​यह स्थान आदिकवि महर्षि बाल्मिकी की तपोस्थली भी रही है जिसके कारण इस स्थान को पौराणिक ​महत्व और भी बढ जाता है जिसके कारण इस स्थान महर्षि बाल्मिकी की तपो​स्थ​ली​​​​ के रुप में विख्यात है। 
​यह स्थान ​देश में ​एक​ पौराणिक स्थल के रुप में जाना जाता है पुराणो में लिखित साक्ष्यो के अनुसार, यही वो स्थान है जहां पर आदिकवि बाल्मिकी ने रामायण जैसे ​​​महाग्रन्थ ​की रचना की​​​ ​​​​​​।

यहीं पर महर्षि बाल्मिकी का आश्रम था जहां पर वो तप और साधना करते थे। जो आज पूरे देश में आस्था का केन्द्र बन गया है, जिसको लोग वनदेवी धाम के नाम से ​भी ​जानते हैं, ऐसे में नवरात्रि के अवसर पर इस स्थान की महत्ता और बढ जाती है, मां वनदेवी को शक्ति के रुप में पूजा जाता है वैसे तो इस स्थान पर वर्ष भर देश के कोने कोने से श्रद्वालू आते हैं और दर्शन पूजन करते हैं। वर्ष भर में लाखों लाख की संख्या में श्रद्वालु देश के कोने-कोने ​वनदेवी में पहूुंचते हैं​​।

नवरात्रि के अवसर पर इस स्थान पर काफी भीड़ रहती है । वहीं मां वन देवी को ​​​श्रद्वालु ब​ताते हैं​ कि चुनरी नारियल बतसा और फूल वबेहद पसन्द है जिसके चाढ़ावे से मां प्रसन्न होती है इसी के साथ महिलाए अखन्ड सौभाग्यवती होने का मां ​को सिन्दूर चढ़ाती हैं, जिससे माँ का​​​ आशीर्वाद भी प्राप्त करती हैं। कहते हैं वनदेवी माँ से माँगी गयी हर मुराद पूरी होती है। माँ को महिलाए सिन्दूर चढ़ाती हैं, इसके साथ मन्दिर परिसर मे महिलाए मां को चढ़ाने के लिए हलुवा और पूड़ी भी बनाती है जिसको चढ़ाते हैं।

त्रेता युग में भगवान राम जब लंका विजय के पश्चात जब आयोध्या पहूँचे और राजा बने तो उनकी राज्य की प्रजा ने ही उन पर सवाल खडे कर दिया। लक्ष्मण द्वारा सीता माता को वन में छोड़े जाने के पश्चात सीता माता भटकते हुए यही पर पहूँची तो महर्षि बाल्मिकी ने सीता को देखा तो उनको अपनी कुटी में रख लिया उस समय सीतामाता को रख लिया और लवकुश का जन्म भी हुआ।

महर्षि बाल्मिकी ने माता सीता का नाम बदलकर वनदेवी रख दिया जिससे उनकी पहचान किसी को ना हो सके की महर्षि के आश्रम में आयोध्या की रानी रहती है, जिससे भगवान श्रीराम की समाज में अवहेलना होती, इस स्थान को जिले में पौराणिक स्थल के रुप मे जाना जाता है। किवदन्तियो के अनुसार हजारो वर्ष पहले यहा पर खुदाई के दौरान धरती के अन्दर से एक सिंहासन निकला जिस पर दो मुर्तियाँ बनी थी जिसकी चर्चा पूरे इलाके मे फैल गयी थो एक ब्राम्हण को स्वपन्न आया कि जो सिंघासन प्रकट हुआ है उस पर वनदेवी और वनदुर्गा की मूर्ति है जिसको स्थापित करके पूजा अर्चना करना है जिससे समाज का कल्याण होगा।

बताते हैं कि यह स्थान घना जंगल के रुप में था जिसका अवशेष आज भी विघमान है इस वनदेवी धाम के आस पास जंगल ही जंगल है। तभी इस स्थान पर वनदेवी के रुम में माँ सीता की पूजा अर्चना शूरु हो गयी है कुछ लोग तो कहते है जब मां सीता धरती में धरती माता के साथ समा गयी थी तो उसी का ही यह प्रति मूर्ति है जो एक ही सिघासन पर माँ वनदेवी और वनदुर्गा की एक साथ की मूर्ति है जो प्राप्त हुयी है। वैसे तो वर्षभर श्रद्वालु इस स्थान पर पहूँचते है लेकिन नवरात्रि पर माँ दर्शन करने का विशेष महत्व रहता है। वहीं इस स्थान पर वर्षभर रामायण का पाठ और कीर्तन होता रहता है।

 हजारों पुराना हो चुके इस मन्दिर के बारे मे आसपास के लोग भी कुछ ज्यादा नहीं बता पाते है। हां बस इतना कहते है हमारे पूर्वज भी बताते थे कि वो भी नही जानते है कि मन्दिर कब का बना हुआ है वैसे तो मन्दिर के काफी पुराना होने की वजह से जीर्ष शीर्ण हो चुका है इस लिए वनदेवी धाम को एक बार पुन जीर्षो द्वार कराया जा रहा है। 
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