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मिर्गी और टेंशन के दौरे में अंतर
डॉ. गौरव सिंह का कहना है कि मिर्गी के दौरे में आंख चढ़ी की चढ़ी रह जाती है, जबकि टेंशन के दौरे में आंख बंद हो जाती है। मिर्गी के दौरे में लैट्रिन और पेशाब कपड़े में ही छूट जाती है जबकि टेंशन के दौरे में ऐसा नहीं होता। उन्होंने बताया कि हिस्टीरिया यानी टेंशन के दौरे की चपेट में आए व्यक्ति के पास भीड़ नहीं लगानी चाहिए तथा उसे यह अहसास दिलाएं कि उसे कुछ नहीं हुआ है। इस बीमारी में बोतल या इंजेक्शन का कोई लाभ नहीं होता। उसे कामकाज से न रोकें तथा विशेषज्ञ मनोचिकित्सक से ही उसका इलाज कराएं। डॉ. सिंह का कहना है कि मिर्गी का इलाज लम्बा चलता है, जबकि टेंशन के दौरे का शिकार व्यक्ति चार पांच माह में ही पूर्ण स्वस्थ हो जाता है।
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महिलाएं अधिक प्रभावितवहीं डॉ. श्वेता चौहान का कहना है कि टेंशन का दौरा स्त्री और पुरुष दोनों को हो सकता है लेकिन महिलाएं चूंकि स्वभाव से अधिक संवेदनशील होती हैं और भावनाओं में बहकर अत्यधिक मानसिक तनाव लेती हैं लिहाजा वे इस रोग की चपेट में ज्यादा आती हैं। डॉ. श्वेता का कहना है कि मथुरा और उसके आसपास के जिलों के लोग प्रायः हिस्टीरिया और मिर्गी के दौरे में अंतर नहीं समझ पाते। मिर्गी में रोगी को अचानक दौरा पड़ता है और आधे से एक मिनट के लिए शरीर कड़क पड़ जाता है। मरीज के दांत भिंच जाते हैंए जिससे उसकी जीभ दांतों के बीच में आ जाती है। जीभ कटने से खून भी आ जाता है जबकि टेंशन के दौरे में दांत तो भिंच जाते हैं पर जीभ नहीं कटती।