भारत में एक गांव ऐसा.. जहां के लोगों को एक दिन पहले मनानी पड़ती है दिवाली
Unique Diwali : मध्य प्रदेश में स्थित धनगांव, एक ऐसा गांव है, जहां दिवाली के साथ-साथ हिंदू रीति से मनाए जाने वाले सभी त्योहार निर्धारित दिन से एक दिन पहले मनाया जाता है। खास बात ये है कि, गांव की इस परंम्परा को जब भी बदलने के बारे में सोचा गया, गांव में कोई न कोई अनहोनि घटना घटी है।
Unique Diwali : देशभर में 31 अक्टूबर गुरुवार को दिवाली का पर्व मनाया जाएगा। लेकिन, मध्य प्रदेश के मंडला जिले का एक गांव ऐसा भी जहां के लोगों ये त्योहार एक दिन पहले मनाना पड़ता है। यहां भी हर घर में दीप जलेंगे, आतिशबाजी होगी, गले लगाकर एक दूसरे को दीपावली की बधाई दी जाएगी, लेकिन ये सब होगा दिवाली से एक दिन पहले यानी आज की शाम।
मोहगांव ब्लॉक से 40 किलोमीटर दूर एक ऐसा गांव है, जहां सिर्फ दिवाली ही नहीं, बल्कि हर प्रमुख त्योहार की खुशियां एक दिन पहले मनाई जाती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि अगर वो इसका पालन नहीं करते तो उनके गांव में विपत्ति आ जाएगी। हम बात कर रहे हैं जिले में स्थित 900 लोगों की आबादी वाले ग्राम पंचायत धनगांव की। जैसे इस बार देशभर में 31 अक्टूबर को दिवाली मनाई जाएगी। लेकिन धनगांव में दिवाली तय तिथि से एक दिन पहले यानी आज 30 अक्टूबर को ही मना ली जाएगी।
सिर्फ इसी बार नहीं बल्कि हर साल इस गांव के लोग दिवाली एक दिन पहले ही मनाने आ रहे हैं। इसके पीछे ग्रामीणों की अपनी परंपरा और मान्यता है। यहां एक साथ मिलकर ग्रामीण पूजा करते हैं। दीप जलाते हैं और पटाखे फोड़ने के साथ पूरा गांव मिलकर अपना आदिवासी नृत्य सैला कर एक दूसरे के साथ खुशियां बांटते हैं। आज गांव में दिवाली होने के चलते यहां के सभी रहवासियों में खासा उत्साह है। घरों की साफ-सफाई का काम एक दिन पहले ही पूरा हो चुका है और आज गांव के सभी लोग शाम को होने वाले सामूहिक कार्यक्रम की तैयारी में जुटे हुए हैं। गांव में पीढ़ीयों से चली आ रही मान्यता के चलते यहां हर पर्व एक दिन पहले मनाया जाता है।
जानें आखिर क्या है वजह
ग्रामीणों की मानें तो त्योहारों को एक दिन पहले मनाने के पीछे एक मान्यता पूर्ण कहानी है। कहते हैं सैकड़ों साल पहले ग्राम देवता खेरमाई माता किसी ग्रामीण के स्वप्न में आई थीं। उन्होंने गांव की खुशहाली के लिए ऐसा करने को आदेशित किया था। तभी से हर साल दिवाली, होली, पोला और हरेली तय तारीख से एक दिन पहले मनाई जा रही है। बुजुर्गों और पुरखों द्वारा बनाई गई इस परंपरा को वे तोड़ना नहीं चाहते। जब-जब इसकी कोशिश की गई तो गांव पर कोई न कोई संकट या किसी की मौत भी जरूर हुई है।
इसके अलावा, अगर ये लोग देशभर के साथ मिलकर कोई भी त्योहार मनाने के बारे में सोचते हैं तो इन्हें फसलों या पशुओं का नुकसान झेलना पड़ता है। कई बार इस परंपरा को तोड़ने के कारण गांव गंभीर बीमारियों का प्रकोप तक झेल चुका है। ऐसे में यहां क् ग्रामीण एक दिन पहले ही त्योहार मनाना उचित समझते हैं। हालांकि, ऐसा नहीं है की इस परम्परा से उनके उत्साह में कोई कमी आती है। गांव के ग्रामीण उत्साह के साथ इस दिन का इंतजार करते हैं और सभी मिलकर शाम को दिवाली मनाने हैं। ग्रामीणों के इस त्योहार में कोई भी चीज की कमी नहीं होती। सभी ग्रामीण दीपों के इस पर्व पर पहले अपने ग्राम देवताओं की पूजते हैं। फिर खेरमाई मंदिर जाकर गांव की खुशहाली की प्रार्थना करते हैं। फिर लगभग हर घर में पूरी रात जागरण चलता है।
एक दिन पहले दिवाली मनाने से खुद दिखता है असर
इस गांव में एक अलग ही पंरपरा है, यहां के रीति रिवाज भी अलग हैं। यहां ग्रामीण अपने गांव की माता की पूजा करने के बाद सैला डांस करते हैं। जिसमें क्या बच्चे क्या बुजुर्ग सभी वर्ग के लोग शामिल होते है। और नरक चौदस के दिन दिवाली की पूजन करने के बाद सारी रात का जागरण करते हैं। नियत तिथि में त्योहार मनाया जाता है। तो गांव की शांति में इसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से असर दिखाई देता है। कुछ वर्ष पहले परंपरा को बदलने का प्रयास किया गया था लेकिन उस समय गांव में अप्रिय घटनाएं घटित हुई थी। जिसके बाद कभी प्रयास नहीं किया गया।
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