शासकीय नौकरी के साथ बनाते थे मूर्तियां
मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण ने बताया कि उनके पिता गया प्रसाद कटारे मंडला जेल में प्रधान आरक्षक के पद पर पदस्थ थे। ये अपनी शासकीय सेवा के साथ मूर्तियां बनाने का कार्य भी जेल के आसपास ही किया करते थे। अपनी शासकीय सेवा के कार्यकाल के साथ 40 वर्ष तक प्रतिमाओं को बनाने का कार्य किया है। मूर्तिकार लक्ष्मी अपने पिता के इस कार्य में मदद किया करते थे और माटी की कला को आज तक जीवित रखे हुए है। अब मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण के पिता रिटायर हो चुके है, अब मूर्तियां को आकार देने का कार्य गया प्रसाद के बेटे और नाती कर रहे है।
16 वर्ष से सराफा में बना रहे मूर्तियां
लक्ष्मी नारायण अपने पिता से सीखी कला को फैलाते गए। करीब 55 वर्ष मंडला जेल के पास मूर्तियां बनाने के कार्य को फिलहाल विगत 16 वर्ष पहले जिला मुख्यालय के सराफा बाजार में स्थानांतरित कर लिए। 16 वर्ष से लक्ष्मी नारायण सराफा में एक किराए की दुकान में मूर्तियों को बनाने का कार्य कर रहे हैं। अभी तक हजारों मूर्तियों को आकार देने के साथ अपने परिवार का पालन पोषण अपनी कला से कर रहे है।
सड़क हादसे में गंवा दिए एक पैर
वर्ष 2011 के अप्रैल माह में यात्री बस में जा रहे लक्ष्मी नारायण एक सड़क हादसे में अपना एक पैर गवां चुके हैं। इस सड़क हादसे से इनके परिवार पर दुख का पहाड़ टूट गया था। गंभीर घायल होने के बाद इनके परिवार का भरण पोषण की चिंता सताने लगी थी। लेकिन ईश्वर के आगे किसी की नहीं चलती। मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण का आत्म विश्वास और उनका हौंसला उन्हें अपने पिता की कला को जीवित रखने का संकल्प एक बार फिर लक्ष्मी नारायण को अपने परिवार के साथ खड़ा कर दिया है। सड़क हादसे में लक्ष्मी नारायण का एक पैर खराब हो चुका था, डॉक्टर को उनका एक पैर अलग करना पड़ा। इसके बाद भी लक्ष्मी नारायण अपना हौसला टूटने नहीं दिए और अपनी दिव्यांगता को अपनी कला के आगे नहीं आने दिया। लक्ष्मी नारायण अपने परिवार और एक पैर के सहारे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते रहे। उन्होंने बताया कि मूर्तियों की बुकिंग एडवांस में हो जाती है।