रावण अगर सीता का हरण नहीं करता, तो युद्ध और उसका पतन नहीं होता। लक्ष्मण से बदला लेने के लिए रावण ने ऐसा किया। रावण की बहन शूर्पनखा का लक्ष्मण ने अपमान किया था। लेकिन क्रोध, विश्वासघात और प्रतिशोध में अपना ही नहीं, पूरे खानदान का नुकसान कर गया। इसलिए बदला लेने की जगह माफ करना सीखना चाहिए।
रावण सीता को धोखे से उठाकर ले आया था। वह तो खुश था, लेकिन उसे नहीं पता था कि असल में लंका में सीता का मायावी रूप ही लेकर वह आया था। उसके इस काम से उसका नाश हो गया। इससे यह सबक यह मिलता है कि लालच से कभी तृप्ति नहीं होती। सिर्फ घमंड का नाश होता है।
जटायु की ईमानदारी व सच्चाई बहुत महत्त्वपूर्ण थी। उनके जीवन की असली खुशी थी भगवान राम को खुश करने में। इसी कोशिश में उन्होंने अपने प्राण तक खो दिए थे। यह कहानी बताती है कि हारकर जीतना कहीं ज्यादा अच्छा है, बजाय जीतकर हारने से।
इसका उदाहरण शबरी है। बहुत समय पहले गुरु ने उनसे भगवान राम की प्रतीक्षा करने के लिए कहा था। शबरी रोजाना उसी उत्साह के साथ भगवान के इंतजार में उस जगह को साफ करतीं, उनके लिए रोज फूल-फल तोड़तीं। गुरु के शब्दों में उन्हें पूर्ण विश्वास था, इसलिए धैर्यपूर्वक दृढ़ संकल्प के साथ प्रतीक्षा कर पाईं। उन्हें इसका मनचाहा परिणाम भी मिला।
भगवान राम ने कभी कोई भेदभाव नहीं किया। उनकी नजर में सब एक समान थे। केवट, शबरी ही नहीं, पशुओं के साथ वे करुणा के साथ पेश आते थे। उन्होंने सिखाया कि सच्चा इंसान वहीं है जो छोटे-बड़े, अमीर-गरीब के भेदभाव के चक्कर में नहीं फंसता।
रामायण की कहानी विविधता में एकता की सीख देती है। राजा दशरथ की तीन रानियां थी और चार बेटे। परिवार में सभी का स्वभाव अलग-अलग था, इन सबके बावजूद अच्छे-बुरे दिनों में सब एक होकर रहे। कैकेयी के मन में थोड़ा बैर जरूर आया, लेकिन कभी भी उन्होंने सौतेले बेटे राम के बारे में बुरे विचार नहीं रखे। बाद में अपनी गलती समझ आने पर पश्चाताप भी किया। इसी तरह परिवार को एक सूत्र में पिरो कर चलने की आवश्यकता हम सबको है।
भगवान राम का जिम्मेदारी के साथ एक पुत्र, पति, भाई और एक राजा के कर्तव्यों का निर्वहन करना उनके प्रेम और दया भाव जैसे मानवीय गुणों का परिचायक है। इन्हें अपनाने की आवश्यकता है।
एक सौतेली मां ने राम को वनवास भेजा। राम के साथ दूसरी सौतेली मां का बेटा लक्ष्मण भी अपने बड़े भाई के साथ चल पड़ा। 14 साल तक दोनों भाई वन में रहे। वहीं कैकेयी के बेटे भरत ने भाई के लिए गद्दी ठुकरा दी। राम की वापसी पर उन्हें राजकाज संभालने का आग्रह किया। सीता की बहनों ने भी स्वार्थ से ऊपर उठकर रिश्तों को निभाया।
मनुष्य पर संगत का असर पड़ता है। कैकेयी अपने बेटे भरत से ज्यादा अपने सौतेले बेटे राम को प्यार करती थीं। लेकिन अपने मायके से आई दासी मंथरा के कान भरने की वजह से उन्होंने राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया। पहले वे ऐसी नहीं थीं। इसे संगत का असर ही कहेंगे, जिसने कैकयी के अंदर नकारात्मकता को हावी कर दिया।
यह रामायण की सबसे बड़ी सीख है। इसके बारे में हम सब बचपन से पढ़ते और सुनते आए हैं। रावण ने सीता पर बुरी नजर डाली और उनका हरण कर लंका ले गया। फिर श्रीराम रावण को पराजित कर सीता को वापस ले आएं। इस घटना का सार यह है कि आप कितने भी शक्तिशाली क्यों न हो। अगर आपकी नीयत सही नहीं है, तो जीत भी आपके जीवन से कोसों दूर रहेगी।