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‘पाठा की पाठशाला’ के जरिए छवि सुधार रही पुलिस !

Patha Ki Pathshala : दस्यु उन्मूलन को लेकर बेगुनाहों के उत्पीडऩ के कथित आरोप झेलने वाली चित्रकूट पुलिस (Chitrakoot Police) अब ‘पाठा की पाठशाला’ अभियान (Patha Ki Pathshala Campaign) के जरिए अपनी छवि सुधारने की कोशिश में लगी है।

Jul 01, 2019 / 10:58 am

जमील खान

UP Police

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Patha Ki Pathshala : दस्यु उन्मूलन को लेकर बेगुनाहों के उत्पीडऩ के कथित आरोप झेलने वाली चित्रकूट पुलिस (Chitrakoot Police) अब ‘पाठा की पाठशाला’ अभियान (Patha Ki Pathshala Campaign) के जरिए अपनी छवि सुधारने की कोशिश में लगी है। पाठा के जंगलों में बसे वनवासी पुलिस के इस अभियान की तारीफ कर रहे हैं। मिनी चंबल घाटी के नाम से चर्चित बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले का पाठा जंगल दस्यु सरगनाओं के लिए कभी सुरक्षित अभयारण्य माना जाता रहा है। यहां तीन दशक तक इनामी डकैत ददुआ (शिवकुमार कुर्मी) अपनी समानांतर सरकार चला चुका है। 2007 में एसटीएफ के साथ हुई एक मुठभेड़ में वह गिरोह के 13 साथियों के साथ मारा गया था।

ददुआ की मौत के बाद ठोकिया, रागिया, बलखडिय़ा ने पुलिस के सामने कड़ी चुनौती पेश की। लेकिन ये सभी डकैत भी पुलिस के हाथों या गैंगवार में मारे गए। कुछ पकड़े गए और कई ने मारे जाने के भय से समर्पण कर दिया। अब पाठा के जंगलों में साढ़े छह लाख रुपये का इनामी डकैत बबली कोल ही बचा है। अब तक चले दस्यु उन्मूलन अभियान के दौरान चित्रकूट पुलिस पर हमेशा कोल वनवासियों के उत्पीडऩ और उन्हें दस्यु संरक्षण के नाम पर फर्जी मुकदमों में जेल भेजने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन अब स्थितियां बदली हुई हैं। पुलिस ने कोल वनवासियों के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए ‘पाठा की पाठशाला’ नामक अभियान शुरू किया है। जो बचपन जंगल में बकरी चराने में बीतता था, अब वह पाठशालाओं में ‘ककहरा’ सीखने में बीते, इसकी कोशिश की जा रही है।

इस पहल के अगुआ, जिले के पुलिस अधीक्षक मनोज झा बताते हैं, बच्चों के दिमाग में यह बैठाना जरूरी है कि पुलिस सिर्फ दंडात्मक कार्रवाई नहीं करती, बल्कि वह रचनात्मक भी है। बच्चों का भविष्य शिक्षा से सुधारा जा सकता है। पुलिस अब भी दस्यु उन्मूलन में लगी है, लेकिन वह वनवासी बच्चों को स्कूल भेजने के लिए भी प्रेरित करती है। इसके लिए दस्यु प्रभावित गांवों को लक्ष्य बनाकर ‘पाठा की पाठशाला’ अभियान शुरू किया गया है, और मानिकपुर के थानाध्यक्ष के. पी. दुबे को इसका प्रभारी बनाया गया है।

उल्लेखनीय है कि चित्रकूट जिले के मानिकपुर और मारकुंडी थाना क्षेत्र के घने जंगली इलाके दस्यु प्रभावित माने जाते हैं, और यहां वनवासियों के लगभग 60 गांव हैं। इन गांवों में इस अभियान को चलाया जाना है। दो सप्ताह पहले शुरू हुआ यह अभियान स्कूल खुलने तक यानी पहली जुलाई तक चलेगा और उसके बाद अगले 15 दिनों तक इस बात का पता लगाया जाएगा कि जिन बच्चों को प्रेरित किया गया, उन पर इस अभियान का कितना असर हुआ, और वे स्कूल जा रहे हैं या नहीं।

झा बताते हैं, इस अभियान के तहत हम बच्चों को मुफ्त में कॉपी-किताबें और बस्ता बांट रहे हैं। उन्हें और उनके परिजनों को समझा रहे हैं कि बच्चे स्कूल जाएं। इसके साथ ही उन्हें पुलिस के रचनात्मक पहलू का पाठ भी पढ़ाया जा रहा है। वनवासियों के उत्पीडऩ के आरोपों पर एसपी झा ने कहा, दस्यु उन्मूलन के दौरान हो सकता है कि कुछ वनवासियों का उत्पीडऩ हुआ हो, लेकिन अब ऐसा नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिन बच्चों के हाथ में ‘कलम’ होनी चाहिए, अभिभावक उन हाथों में मवेशी हांकने के लिए लाठी थमा देते रहे हैं और बाद में डकैत उन्हें बंदूक पकड़ा देते थे। ‘पाठा की पाठशाला’ अभियान की गंभीरता बच्चों के अलावा उनके अभिभावक भी समझने लगे हैं और अब बच्चे जंगल में मवेशी चराने के बजाय स्कूल में ‘ककहरा’ सीखने जाएंगे।

डोंडामाफी गांव के निवासी गजपति कोल कहते हैं, डकैतों को संरक्षण देने के आरोप में पुलिस ने कई निर्दोषों को भी जेल भेजा है। जंगल में सूखी लकड़ी बीनने, गोंद या शहद तोडऩे वालों को भी जेल भेज गया है। अब पुलिस थोड़ी रियायत बरत रही है। किसी को जेल भेजने से पहले उसकी पूरी छानबीन कर रही है। पहले तो मवेशी चराने जंगल गए लोगों के हाथ में रोटी की पोटली पाकर पुलिस कहती थी कि यह डकैतों को खाना देने जा रहा था।

कोल ‘पाठा की पाठशाला’ अभियान की तारीफ करते हैं। वह कहते हैं, अगर बिना छल-कपट के यह अभियान चला तो हमारी अगली पीढ़ी का भविष्य बनेगा। बच्चों को कोई नौकरी मिले या न मिले, कम से कम समाज में बैठने और बोलने लायक तो बन ही जाएंगे। पाठा क्षेत्र में पिछले दो दशक से वनवासियों को सामाजिक और आर्थिक रूप से संपन्न बनाने की कोशिश में लगे सामाजिक कार्यकर्ता बाबा देवीदयाल भी पुलिस के इस कदम की सराहना करते हैं। वह कहते हैं, ‘दस्यु उन्मूलन अभियान से पुलिस की छवि काफी बिगड़ गई थी। लेकिन वनवासियों के बच्चों में शिक्षा की अलख जगाने से पुलिस के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है। साथ ही अब वनवासी भी समझने लगे हैं कि शिक्षा से ही नई पीढ़ी में सुधार संभव है।

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