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अपने बारे में ही नहीं, सबकी सोचें : स्मृति मंधाना

जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, कुछ बेसिक कभी नहीं बदलते, फॉर्मेट भले ही बदल जाए। ऐसा ही क्रिकेट में होता है, जहां बल्लेबाज के सामने आखिरकार आना गेंद को ही है। मूल वही है, मैं गेंद को देखती हूं और उसी के अनुसार अपने शॉट्स खेलती हूं। मैं किसी फॉर्मेट से नहीं घबराती हूं। आपके पास किसी काम को करने के लिए जितना कम समय होगा, उतना ही आपको कैलक्युलेटिव होना पड़ेगा। यह कहना है स्मृति मंधाना Smriti Mandhana का।

Jul 29, 2019 / 06:05 pm

Jitendra Rangey

sports

Smriti Mandhana

मैं लगातार आगे बढऩे के लिए कड़ी मेहनत में भरोसा करती हूं
मैं मुंबई में जन्मी, लेकिन बहुत छोटी थी, तभी हम सांगली चले गए। मैं सुबह के समय में ट्रेनिंग लेती थी, फिर स्कूल जाती थी और शाम को नेट प्रेक्टिस करती थी। कभी-कभी अगर टीचर जल्दी जाने देते तो ईवनिंग नेट्स खत्म करते ही दौड़कर घर जाती और टीवी देखने का शौक पूरा करती। सब कुछ क्रिकेट के बीच होता था। अब मैं 2३ वर्ष की हूं और टी-20 इंटरनेशनल में भारतीय महिला टीम की कप्तानी कर चुकी हूं। मुझे अर्जुन अवॉर्ड पाकर बहुत खुशी हुई वहीं वर्ष के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के लिए रशेल हेहोई-फ्लिंट अवॉर्ड सहित आइसीसी महिला पुरस्कार समारोह में वनडे प्लेयर ऑफ द ईयर का अवॉर्ड तक का सफर पूरा हो चुका है। मैं लगातार आगे बढऩे के लिए कड़ी मेहनत में भरोसा करती हूं।
परिवार से सपोर्ट मिला तो मैंने भी कड़ी मेहनत की
मेरा भाई पहले क्रिकेट खेलता था और उसकी फोटो अखबार में आती थी। इसे देखकर मुझे भी क्रिकेट से लगाव हो गया। मैं अपनी मां से कहती थी कि मैं भी भाई की तरह अखबारों में छपना चाहती हूं। मुझे किसी ने नहीं रोका। हालांकि एक स्टीरियोटाइप सा था, लोग छींटाकशी करते थे। इतना मैदान में भागेगी-दौड़ेगी तो काली पड़ जाएगी, फिर कौन ब्याह कर ले जाएगा? मेरा परिवार जानता था कि यह सब बेकार की बातें हैं। मेरे पिता भी क्रिकेट खेल चुके हैं, लिहाजा उन्होंने मुझे नहीं रोका बल्कि मुझे ट्रेनिंग दिलवाई। परिवार से सपोर्ट मिला तो मैंने भी कड़ी मेहनत की।
कदम बढ़ते ही गए
हर किसी से यही कहना चाहूंगी कि जरूरत से ज्यादा सोच-विचार से बचिए, यह सीधी चीजों को जटिल कर देता है। मैंने महसूस किया कि जीवन में चीजों को सरल बनाए रखना बहुत जरूरी है। जब मैं सिर्फ नौ साल की थीं, तब मुझे महाराष्ट्र की अंडर-15 टीम में चुना गया था। एक नौ वर्षीय बच्ची के रूप में मैंने ज्यादा नहीं सोचा, अपने से उम्र में बड़े गेंदबाजों की मैंने सिर्फ गेंद देखी, उसके अनुसार अपना नैसर्गिक खेल खेला और अपने खेल का पूरा आनंद लिया।
चुनौतियों से निकलता है बेहतर काम
एकदिवसीय मैच में दोहरा शतक (224 नाबाद) हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला क्रिकेटर होने के नाते मैं पहली बार सुर्खियों में आई थी। मुझे लगता है कि जब सामने कोई चुनौती होती है, तो मेरा सबसे बेहतर काम अपने आप बाहर आ जाता है।

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