उनका परिवार गरीब था। घर चलाने की सारी जिम्मेदारी उनकी मां के कंधों पर थी। अपने बच्चों का पालन पोषण करने के लिए उनकी मां दिन-रात मेहनत करतीं। उनकी मां आंगनवाड़ी वर्कर थीं। इसके अलावा इडली बेचने सहित अन्य दूसरी काम भी करती थीं। पढ़ाई के साथ सरथ अपनी मां की मदद भी करते थे। वह मां के साथ इडली बेचने जाते थे। 10वीं के बाद फीस का भुगतान करने के लिए सरथ ने बुक-बाइंडिंग का काम शुरू किया।
12वीं के बाद सरथ को बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (बिट्स), पिलानी में दाखिला मिल गया, लेकिन इसकी फीस बहुत अधिक थी। ऐसे में सरथ की विवाहित बहन ने अपने गहने गिरवी रखकर फस्र्ट सेमेस्टर की फीस का इंतजाम किया। दूसरा सेमेस्टर आने तक सरथ को स्कॉलरशिप मिल गई, जिसकी पहली किस्त से सरथ ने अपनी बहन के गहने छुड़ाए। पढ़ाई के दौरान सरथ ने हमेशा लर्निंग अप्रोच रखी।
बिट्स से डिग्री लेने के बाद सरथ को चेन्नई की पोलारिस सॉफ्टवेयर लैब में जॉब मिल गई। जॉब के साथ ही सरथ ने कैट की तैयारी शुरू कर दी। थर्ड अटेम्प्ट में उन्हें IIM अहमदाबाद में दाखिला मिल गया। फिर सरथ ने लाखों के पैकेज की नौकरी छोड़ खुद का व्यवसाय करने का निर्णय लिया। 2006 में उन्होंने अपनी कंपनी शुरू की।
शुरुआत में उन्होंने दूसरी कंपनियों में चाय, कॉफी और नाश्ता सप्लाई किया। फिर उन्होंने अपने कारोबार का विस्तार किया। इसके बाद उन्होंने कई जगह फूड किंग कैटरिंग सर्विसेज नाम से रेस्तरां खोले। उन्होंने 2010 में हंगर फ्री फाउंडेशन की स्थापना की। यही नहीं, सरथ बाबू ने पॉलिटिक्स में भी खुद को आजमाया।