तभी एक दिन उनके पास मुनव्वर अली का फोन आया और उन्होंने खेलन के लिए कोलकाता बुलाया। उनके पास पैसे नहीं थे, सुविधाएं नहीं थी फिर भी पंकज सिंह कोलकाता गए और वहां कई दिनों तक संघर्ष किया। इसी दौरान उन्होंने बेंगलुरू टूर्नामेंट में 5 विकेट लेकर सबको चौंका दिया। उनकी प्रतिभा देख नेशनल क्रिकेट एकेडमी के बृजेश पटेल और क्रिकेटर पार्थ शर्मा ने उन्हें रोक लिया और इंडिया-ए के प्लेयर्स के लिए बॉल डालने को कहा।
पंकज का प्रदर्शन देख पार्थ शर्मा ने उन्हें राजस्थान के लिए खेलने को कहा। इस पर वह 2003 में राजस्थान आ गए। यहां मोटिवेशन मिला और उन्होंने एमआरएफ ट्रॉफी के साथ अंडर 19 और अंडर 25 खेला। तभी फिर एक बार भाग्य ने धोखा दे दिया, उन्हें राजस्थान का ना होने के चलते यूपी वापस भेज दिया गया। वहां जाकर वह आर्मी के लिए वॉलीबॉल खेलने लगे। वहां उन्होंने कई हफ्ते प्रेक्टिस की परन्तु उनका मन क्रिकेट में ही लगता था। लगातार कई बार असफलता मिलने के बाद पंकज निराश भी हुए, फिर उन्होंने सोचा कि स्पोर्ट्स ने इतनी परीक्षा ली, इसे छोड़ दिया जाए, लेकिन गिरकर उठने का मजा ही कुछ और है।
लिए हाईऐस्ट विकेट
फिर उन्होंने पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया और यहीं जयपुर जिला में खेलने का चांस मिला। 2005 में अजय जड़ेजा ने उन्हें अपनी टीम के लिए सलेक्ट किया। कई टूर्नामेंट में हाईएस्ट विकेट लेकर उन्होंने सबको चौंका दिया। इसके बाद उन्होंने कई नए रिकॉर्ड रच दिए। उन्होंने उड़ीसा के अगेंस्ट सेमीफाइनल में 10 विकेट लिए। रणजी ट्रॉफी में रेकॉर्ड बनाया। राजस्थान के लिए खेलते हुए हाईऐस्ट विकेट लिए। फिर इंडियन टीम का हिस्सा बने। आइपीएल के लिए छह सीजन खेले। इस तरह उन्हें एक के बाद एक सफलता मिलती चली गई।