ये भी पढ़ेः भारत सरकार मोबाइल एप के जरिए देगी 5 लाख युवाओं को नौकरी
ये भी पढ़ेः आज ही आजमाएं ये उपाय तो पक्का डबल हो जाएगी इनकम
वर्ष 1952 में सुचित्रा सेन ने बतौर अभिनेत्री बनने के लिये फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और बंगला फिल्म ‘शेष कोथा’ में काम किया। हालांकि फिल्म प्रदर्शित नही हो सकी। वर्ष 1952 में प्रदर्शित बंगला फिल्म ‘सारे चतुर’ अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फिल्म थी। फिल्म सुपरहिट रही और उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 1961 में सुचित्रा-उत्तम कुमार की जोड़ी वाली एक और सुपरहिट फिल्म ‘सप्तोपदी’ प्रदर्शित हुई। द्वितीय विश्व युद्ध के दुष्परिणामों की पृष्ठभूमि पर आधारित इस प्रेमा कथा फिल्म में सुचित्रा सेन के अभिनय को जबरदस्त सराहना मिली। आज भी अभिनेत्रियां इस रोल को अपना ड्रीम रोल मानती हैं।
1955 में रखा था हिंदी फिल्मों में कदम
वर्ष 1955 में सुचित्रा सेन ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी कदम रखा। उन्हें शरत चंद्र के मशहूर बंगला उपन्यास ‘देवदास’ पर बनी फिल्म में काम करने का अवसर मिला। विमल राय के निर्देशन में बनी इस फिल्म में उन्हें अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के साथ काम करने का अवसर मिला। फिल्म में उन्होंने ‘पारो’ के अपने किरदार से दर्शकों का दिल जीत लिया। वर्ष 1957 में सुचित्रा सेन की दो और हिन्दी फिल्मों ‘मुसाफिर’ और ‘चंपाकली’ में काम करने का अवसर मिला।
वर्ष 1959 में प्रदर्शित बंगला फिल्म ‘दीप जोले जाये’ में सुचित्रा सेन के अभिनय के नये आयाम दर्शकों को देखने को मिले। इसमें उन्होंने राधा नामक नर्स का किरदार निभाया, जो पागल मरीजों का इलाज करते करते खुद ही बीमार हो जाती है। अपनी पीड़ा को सुचित्रा सेन ने आंखों और चेहरे से इस तरह पेश किया, जैसे वह अभिनय न करके वास्तविक जिंदगी जी रही हो।
वर्ष 1969 में इस फिल्म का हिंदी में रीमेक ‘खामोशी’ भी बनायी गई, जिसमें उनके किरदार को वहीदा रहमान ने रूपहले पर्दे पर साकार किया। वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म ‘बंबई का बाबू’ उनके सिने कैरियर की दूसरी सुपरहिट हिंदी फिल्म साबित हुई। राज खोसला के निर्देशन में बनी इस फिल्म में उन्हें देवानंद के साथ काम करने का अवसर मिला। वर्ष 1963 में प्रदर्शित फिल्म ‘उत्तर फाल्गुनी’ सुचित्रा सेन की एक और महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुयी। असित सेन के निर्देशन में बनी इस फिल्म में उन्होंने मां और पुत्री के दोहरे किरदार को निभाया। इसमें उन्होंने एक वैश्या पन्ना बाई का किरदार निभाया, जिसने अपनी वकील पुत्री सुपर्णा का साफ सुथरे माहौल में पालन पोषण करने का संकल्प लिया है।
इसी वर्ष सुचित्रा सेन की एक और सुपरहिट फिल्म ‘सात पाके बांधा’ प्रदर्शित हुई। जिसमें उन्होंने एक ऐसी युवती का किरदार निभाया जो विवाह के बाद भी अपनी मां के प्रभाव में रहती है। इस कारण उसके वैवाहिक जीवन में दरार पड़ जाती है। बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास होता है, तबतक बहुत देर हो चुकी होती है और उसका पति उसे छोडक़र विदेश चला जाता है। इस संजीदा किरदार से सुचित्रा ने दर्शकों का दिल जीत लिया। उन्हें इस फिल्म के लिए मास्को फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह फिल्म जगत के इतिहास में पहला मौका था, जब किसी भारतीय अभिनेत्री को विदेश में पुरस्कार मिला था।
अपनी फिल्म से हिला दिया था इंदिरा गांधी को भी
बाद में इसी कहानी पर 1974 में कोरा कागज फिल्म का निर्माण किया गया, जिसमें सुचित्रा सेन की भूमिका को जया भादुड़ी ने रूपहले पर्दे पर साकार किया। वर्ष 1975 में सुचित्रा सेन की एक और सुपरहिट फिल्म ‘आंधी’ प्रदर्शित हुई। गुलजार निर्देशित इस फिल्म में उन्हें अभिनेता संजीव कुमार के साथ काम करने का अवसर मिला। इसमें उन्होंने एक ऐसे राजनीतिज्ञ नेता की भूमिका निभाई, जो अपने पिता के प्रभाव में राजनीति में कुछ इस कदर रम गयी कि अपने पति से अलग रहने लगी।
फिल्म ‘आंधी’ कुछ दिनों के लिये प्रतिबंधित भी कर दी गई। बाद में जब यह प्रदर्शित हुई तो इसने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी सफलता अर्जित की। इस फिल्म के लगभग सभी गीत उन दिनों काफी मशहूर हुए थे। इन गीतों में ..तेरे बिना जिंदगी से शिकवा तो नहीं.. और ..तुम आ गये हो नूर आ गया है.. सदाबहार गीतों की श्रेणी में आते हैं। सुचित्रा सेन के अंतिम बार वर्ष 1978 में प्रदर्शित बंगला फिल्म ‘प्रणोय पाश’ में अभिनय किया। इसके बाद उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से संन्यास ले लिया और राम कृष्ण मिशन की सदस्य बन गईं तथा सामाजिक कार्य करने लगीं। वर्ष 1972 में सुचित्रा सेन को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया। अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाली सुचित्रा सेन 17 जनवरी 2014 को इस दुनिया को अलविदा कह गई।