मैंने कभी भी पढ़ाई नहीं छोड़ी। २०१४ में मैंने जेआरएफ क्लियर किया। पीएचडी एडमिशन के बाद मुझे एक्स्ट्रा काम करना पड़ रहा था, लेकिन एक अच्छी बात यह थी कि मुझे फैलोशिप के जो पैसे मिल रहे थे, उससे मैं सेल्फ डिपेंडेंट हो गया। हालांकि पैरेंट्स ने कभी फाइनेंशियल सपोर्ट से मना नहीं किया। २०१५ में ही मैंने सीआइएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंड के लिए क्वालिफाई कर लिया, लेकिन लक्ष्य तो एक ही था और उसके लिए प्रयास भी जारी था। इसलिए इसे छोडक़र मैंने तैयारी पर ही ध्यान दिया। पिछले चार साल में मैंने सिर्फ एक खास दोस्त की शादी अटेंड की, न तो किसी दोस्त, रिश्तेदार के गया और न ही सोशल मीडिया पर समय बिताया। एक बार कुछ गेम्स डाउनलोड कर लिए थे, लेकिन जब इस पर आधा-एक घंटा खराब होने लगा तो मैंने इन्हें डिलीट कर दिया।
लगातार एग्जाम से मैंने अपनी वीकनेस पर काम किया। जैसे शुरू में मेरी राइटिंग प्रेक्ट्सि अच्छी नहीं थी, इस पर मैंने मेहनत की। लास्ट वाले अटेम्प्ट में जब इंटरव्यू की बारी आई तो मुझसे पूछा गया कि आपने इतनी पढ़ाई क्यों की? मैंने कहा ताकि मैं एक बेहतर इंसान बन सकूं। इस पर इंटरव्यूअर ने कहा कि क्या अनपढ़ अच्छा इंसान नहीं हो सकता? तो मैंने कहा कि पढ़ा-लिखा होने से आपमें अच्छे निर्णय लेने की क्षमता आ जाती है। तब आप भावनात्मक रूप से निर्णय न लेकर तार्किक रूप से अच्छे-बुरे का चयन कर सकते हैं।
मनोज का कहना है कि कॉम्पिटेटिव एग्जाम की तैयारी करने वाले यूथ अक्सर ये शिकायत करते हैं कि उन्हें सफलता नहीं मिलती, लेकिन मुझे लगता है कि यदि मेहनत ईमानदारी से की गई है तो सफलता निश्चित ही मिलेगी। तमाम एग्जाम देने के बजाए एक टार्गेट सेट कर लिया जाए, मेहनत की जाए और आत्मविश्वास को रखा जाए तो सफलता मिल सकती है। यूपीएससी के लिए इंग्लिश भी कोई बैरियर नहीं है। मैंने कई एग्जाम दिए लेकिन मेरा टार्गेट हमेशा आइपीएस रखा और इसमें मैं सफलता के बहुत करीब पहुंच चुका हूं। मेरी इस सफलता पर सनी देओल और आइपीएस एसोसिएशन ने बधाई दी है।
जब मुझे दो अटेम्प्ट में सफलता नहीं मिली तो लगा कि मैंने गलत डिसीजन तो नहीं ले लिया। थोड़ी टेंशन भी हुई, लेकिन मैंने आत्मविश्वास का साथ नहीं छोड़ा। मैं बस यही सोचता था कि मुझे अपना मैक्सिमम एफर्ट देना है। मेरे घरवालों ने कभी मेरी पढ़ाई के बारे में कोई सवाल नहीं किए तो मैंने भी उनका विश्वास नहीं टूटने दिया।