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कई बार फेल होने के बाद लगाया ऐसा दिमाग, अमरीका में जमा दी धाक

मनोज मीणा का कहना है कि रिसर्च मेरा पर्सनल इंट्रस्ट था। मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि मुझे सीलिंग फैन ही बनाना है, लेकिन यह जरूर सोचा था कि दूसरों को जॉब देना और इलेक्ट्रिसिटी के इश्यू को सॉल्व करना है।

Jan 15, 2019 / 12:23 pm

सुनील शर्मा

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2006 में मैंने आइआइटी मुंबई में इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग में इंटीग्रेटेड बीटेक प्रोग्राम किया। कॉलेज के दिनों में रोबोटिक्स के कॉम्पिटीशन में पार्टिसिपेट करना मेरा पैशन रहा। मुझे इंस्टीट्यूट का टेक्नीकल अवॉर्ड मिला, तो कॉन्फिडेंस बढ़ा। इसके बाद सीधा इसरो में प्लेसमेंट मिला, लेकिन मैंने दूसरी राह चुनी। शुरू से ही सोच रखा था कि खुद का कुछ करना है और मेरी यह सोच स्ट्रगल लेकर आई। जॉब नहीं था, तो आइआइटी, डीआरडीओ, इसरो के टेक्नीकल प्रोजेक्ट्स लेना शुरू कर दिया। 2012 में अपनी कम्पनी रजिस्टर करवाई और इन संस्थानों को रिसर्च इंस्ट्रूमेंट बनाकर देने लगा।
यह बूटस्ट्रैपिंग मोड तीन साल चला। इस दौरान सिर्फ प्रोजेक्ट्स से सर्वाइव कर रहा था, लेकिन मेरा मानना है कि यह दौर ही सबसे ज्यादा सिखाने वाला रहा। मैंने 25-30 प्रोजेक्ट्स किए और वो भी इंडिया के बेहतरीन साइंटिस्ट्स के साथ, लेकिन मुझे सिर्फ सर्वाइव नहीं करना था। पीछे मुडक़र देखा तो पता चला कि बैचमेट आज काफी आगे निकल चुके हैं। फिर सोचा कि बिजनेस को स्केलेबल बनाना है। इसके लिए मैंने ‘प्रोजेक्ट से प्रोजेक्ट’ में मूव करना शुरू कर दिया। अपना स्टार्टअप, अपने प्रोडक्ट को लेकर पहले काफी जद्दोजहद रही।
पेशेंस को लूज नहीं करें
मनोज का कहना है कि रिसर्च मेरा पर्सनल इंट्रस्ट था। मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि मुझे सीलिंग फैन ही बनाना है, लेकिन यह जरूर सोचा था कि दूसरों को जॉब देना और इलेक्ट्रिसिटी के इश्यू को सॉल्व करना है। यदि यह स्टार्टअप भी सफल नहीं होता, तो प्लान बी के तौर पर मैं रिसर्च फील्ड में ही कुछ करता। मुझे प्रोडक्ट बनाने में नौ महीने लगे। मेरे स्टार्टअप में तीन साल का स्ट्रगल काफी काम आया। लर्निंग के तौर पर मैं अपनी जर्नी को देखूं तो कह सकता हूं कि एंटरप्रेन्योर्स को पेशेंस कभी लूज नहीं करना चाहिए। स्ट्रगल को लर्निंग की तरह लें और फाइनेंशियल इश्यूज से निपटने के लिए ***** स्ट्रैपिंग करें, तो सफल जरूर होंगे। लाइफ में एक्सपेरिमेंट और फेल होना भी जरूरी है।
फिर हुआ फेलियर से सामना
मैंने एक बड़ी डेयरी कम्पनी के लिए व्हीकल ट्रैकिंग और टेम्प्रेचर मॉनिटर सिस्टम बनाया, लेकिन छह महीने तक ही चल पाया और फेल हो गया। इसके बाद दो और प्रोडक्ट बनाए और वे भी फेल हो गए। लेकिन मैंने पेशेंस नहीं खोया। यह फेज एक साल तक रहा, लेकिन कॉन्फिडेंस था कि तीन साल में जो सीखा है, उससे कुछ न कुछ कर ही लूंगा। फिर मैंने इलेक्ट्रिकल फील्ड का स्टार्टअप शुरू किया। मैंने होम अप्लायंस के मार्केट को स्टडी किया तो पता चला कि इंडिया में हर साल 5 से 6 करोड़ पंखे हर साल बनते हैं, लेकिन ये एनर्जी एफिशियेंट नहीं होते। यह मार्केट काफी बड़ा था। ऐसे में मैंने इन्हें एनर्जी एफिशियेंट बनाने के लिए प्रोटोटाइप बनाया। जिसके काफी अच्छे नतीजे आए। एक पंखे की इलेक्ट्रीसिटी में तीन पंखे चले। इसके बाद प्रोडक्ट ‘गोरिल्ला फैन’ की लॉन्चिंग की और पहले ही दिन से सक्सेस मिलने लगी। तीन साल में इसे 2 मिलियन अमरीकन डॉलर की फंडिंग मिल चुकी है। 215 एम्प्लॉई काम कर रहे हैं और जल्द ही 50 करोड़ का टर्नओवर कम्प्लीट करने वाले हैं।
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