‘यूपीपीएससी जैसी परीक्षा छात्रों के भविष्य से जुड़ा मामला’
एसपी सिंह बघेल ने आगे कहा, “समाजवादी पार्टी यूपीपीएससी परीक्षा में छात्रों के खिलाफ लाठीचार्ज जैसे मुद्दे को उठाकर बीजेपी सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है। यह मुद्दा छात्रों के लिए गंभीर है, क्योंकि यूपीपीएससी जैसी परीक्षा छात्रों की मेहनत और उनके भविष्य से जुड़ा हुआ मामला है। अखिलेश यादव भी इस मुद्दे पर अपनी पार्टी की ओर से बोल रहे हैं और छात्रों के समर्थन में खड़े होने का दावा कर रहे हैं। यह सारा घटनाक्रम एक तरह से राजनीतिक ड्रामे का हिस्सा बन गया है, जिसमें हर पार्टी अपनी रणनीति के तहत विरोधियों को कमजोर करने की कोशिश कर रही है।”
‘विपक्ष का आरोप देश के धरोहर के लिए अपमानजनक’
एसपी सिंह बघेल ने कहा, “बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों के बीच एक दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस के नेता खुद की भगवान से तुलना करने के आरोपों का सामना कर रहे हैं। राहुल गांधी को अर्जुन के रूप में चित्रित करना और अपनी तुलना भगवान श्री कृष्णा से करना, एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है। यह विवाद धार्मिक भावनाओं को प्रभावित कर रहा है, क्योंकि भारत में भगवान और धर्म से जुड़ी बातें बहुत ही संवेदनशील मानी जाती हैं। इसके साथ ही, विपक्षी दलों ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि वह भगवान और धर्म के नाम पर वोट हासिल करने की कोशिश कर रही है, जो देश के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए अपमानजनक है।”
‘गरीब और पिछड़े वर्गों की भलाई के लिए भी काम कर रही बीजेपी’
एसपी सिंह बघेल ने आगे कहा, “यूपी में बीजेपी का लगातार ध्यान धर्म और विकास की बातें करने पर रहता है। वे अयोध्या, काशी और मथुरा जैसी धार्मिक स्थलों का नाम लेकर लोगों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सामाजिक और आर्थिक योजनाओं को भी प्रमुखता दे रहे हैं, जैसे किसान सम्मान निधि, शौचालय निर्माण, आयुष्मान कार्ड आदि। यह भाजपा की राजनीति का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, यह दिखा रहा है कि भाजपा न सिर्फ धर्म, बल्कि गरीब और पिछड़े वर्गों की भलाई के लिए भी काम कर रहे हैं।” उन्होंने कहा, “मायावती और उनकी बहुजन समाज पार्टी की स्थिति भी इस चुनावी दंगल में महत्वपूर्ण बन गई है। बसपा, जो एक वक्त में उत्तर प्रदेश में बहुमत के साथ सत्ता में थी, अब बहुत कमजोर हो गई है। अब उनके पास न तो कोई प्रमुख सदस्य है और न ही राजनीतिक ताकत जो उन्हें एक मजबूत विपक्ष बना सके। बीजेपी के मुकाबले वे कहीं नहीं टिक पा रही हैं, और छोटे दलों ने भी अपनी ओर से प्रभावी प्रयास किए हैं, जैसे कि राजभर और संजय निषाद के दलों ने भी अपनी चुनावी दावेदारी पेश की है।”