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महासमुंद

जमीन में दफ्न रहने वाला साधक हर साल बढ़ा देता था समय सीमा, इस बार पांच दिन बाद बाहर निकला तो…

हौसला इसकदर बढ़ा की उसने यह प्रक्रिया हर साल करने शरू कर दी और हर साल वह दफन हो कर समाधि लेने की अवधि को दोगुना कर देता था। इसी तरह उसने क्रमश: 2016 में 48 घंटे, 2017 में 72 घंटे, 2018 में 96 घंटे की समाधि ली।

महासमुंदDec 21, 2019 / 08:12 pm

Karunakant Chaubey

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महासमुंद. समाज चाहे कोई भी हो, प्राय: देखा जाता है कि सभी के अपनेअपने रीति-रिवाज, परंपराएं, मान्यताओं के साथ अपने कुछ अंधविश्वास भी होते हैं। छत्तीसगढ़ में भी अंधविश्वास के कारण बहुत से लोगों ने अपनी जान गवाई है। यहाँ ग्रामीण इलाकों में ओझाओं के प्रति लोगों का बहुत ही प्रगाढ़ विश्वास है।

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ऐसा ही एक अंधविश्वास का मामला राजधानी में सामने आया है। जहाँ महासमुंद जिले के पचरी गांव के रहने वाले एक साधक के अंधविश्वास की वजह से उसकी जान चली।

जानकारी के अनुसार, चमनदास जोशी (उम्र-30) नाम का एक साधक पिछले कई सालों से साधना करता था। पहली बार उसने 2015 में अपनी साधना के लिए उसने खुद को एक गढ्ढे में दफन कर 24 घंटे के लिए समाधि ले ली थी और सकुशल बेहोशी की हालत में बाहर निकल आया था।

इसके बाद उसका हौसला इसकदर बढ़ा की उसने यह प्रक्रिया हर साल करने शरू कर दी और हर साल वह दफन हो कर समाधि लेने की अवधि को दोगुना कर देता था। इसी तरह उसने क्रमश: 2016 में 48 घंटे, 2017 में 72 घंटे, 2018 में 96 घंटे की समाधि ली।

ऐसा करते हुए वो हर बार गढ्ढे की गहराई भी बढ़ाता जाता था। उसने इस प्रक्रिया को अपनी साधना बताते हुए सतनाम पंथ का पुजारी और बाबा गुरूघासीदास से प्रेरित होने की बात कहता था। कई बार पुलिस ने भी उसे ऐसा करने से रोका लेकिन वह नहीं माना।

इस बार भी हर साल की तरह 18 सितम्बर को उसने समाधि लेने के लिए पिछले साल से अधिक गहरा गढ्ढा खुदवाया और समय सीमा भी पिछले साल से दोगुना बढ़ाते हुए 192 घंटे कर दी लेकिन इस बार अवधि पूरी होने के बाद जब लोगों ने उसे बाहर निकला तो उसकी मौत हो चुकी थी। ग्रामीण उसे लेकर जिला अस्पताल पहुंचे जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

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