आंकड़ों के अनुसार, साल 2017 में
उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की 8,784 घटनाएं दर्ज की गई थी, जबकि 2023 में पराली जलाने की महज 3,996 घटनाएं दर्ज की गई। सरकार ने किसानों को पराली जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिसमें कम्पोस्टिंग और सीड ड्रिलिंग के लाभों पर जोर दिया गया है।
योगी सरकार चला रही अभियान
योगी सरकार के द्वारा किसानों को यह समझाया जा रहा है कि पराली जलाने से मिट्टी के लिए आवश्यक पोषक तत्व, जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा, पराली जलाने से भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद भी जल जाते हैं, जो कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।
पराली जलाने पर लगेगा जुर्माना
इस संदर्भ में, सरकार ने पराली की कम्पोस्टिंग के लिए 7.5 बायोडी कंपोजर भी उपलब्ध कराए हैं। एक बोतल डी कंपोजर का उपयोग करके किसान एक एकड़ खेत की पराली की कम्पोस्टिंग कर सकते हैं। इसके साथ ही, पराली जलाने पर 15,000 रुपये का जुर्माना भी निर्धारित किया गया है, जिससे किसान इससे बचने की कोशिश कर रहे हैं।
पर्यावरण एक्शन ग्रुप के अध्ययन में नया खुलासा
गोरखपुर पर्यावरण एक्शन ग्रुप के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि प्रति एकड़ डंठल जलाने पर पोषक तत्वों के अलावा 400 किग्रा उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाख फफूंद जल जाते हैं। फसल अवशेष से ढकी मिट्टी का तापमान नम होने से इसमें सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ जाती है, जो अगली फसल के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व मुहैया कराते हैं। अवशेष से ढकी मिट्टी की नमी संरक्षित रहने से भूमि के जल धारण की क्षमता भी बढ़ती है। अध्ययन में इस बात का भी पता चला है कि इससे सिंचाई में कम पानी लगने से इसकी लागत घटती है। साथ ही दुर्लभ जल भी बचता है। डंठल जलाने की बजाय उसे गहरी जोताई कर खेत में पलटकर सिंचाई कर दें। शीघ्र सड़न के लिए सिंचाई के पहले प्रति एकड़ 5 किग्रा यूरिया का छिड़काव कर सकते हैं।