होता है तुलसी विवाह (Tulsi Vivah)
देवोत्थान एकादशी यानि आज के दिन मां तुलसी और भगवान शालिग्राम का धूमधाम से विवाह किया जाता है।
कैसे करें तुलसी पूजा (Tulsi Puja)
तुलसी माँ के विवाह के समय तुलसी के पौधे को कन्या स्वरूप मानकर लाल चुनरी ओढ़ाई जाती है। चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, बिछिया, वस्त्र, महवर जैसी चीजों से सोलह श्रृंगार किया जाता है। वहीं भगवान शालिग्राम को भी जल से स्नान आदि कराकर नए वस्त्र आदि धारण कराए जाते हैं। इसके बाद पुरोहित मंत्रोचार के द्वारा विवाह शुरू करते हैं। तुलसी विवाह के दौरान बारात व कन्यादान जैसी रस्में भी विधिविधान से निभाई जाती हैं। विवाह संपन्न होने के बाद शंख-घंटा घड़ियाल आदि बजाए जाते हैं।
कन्यादान का फल
तुलसी विवाह के समय भगवान विष्णु को प्रतिमा समीप में रखना अनिवार्य है। इस दिन विवाह करने का उद्देश्य यह है कि इसके माध्यम से सीधे विष्णु जी का अह्ववाहन किया जाता है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के विवाह का प्रतीकात्मक माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु को तुलसी जी अति प्रिय हैं। इनका एक नाम वृंदा भी है। तुलसी जी के माध्यम से विष्णु जी तक हर बात आसानी से पहुंचाई जा सकती है। वहीं भगवान शालिग्राम और तुलसी जी के विवाह को कन्यादान से भी जोड़कर देखा जाता है। हिंदू धर्म में कन्यादान को महादान माना जाता है। हर इंसान को अपने जीवन में पुण्य की प्राप्ति के लिए कन्यादान करना चाहिए। ऐसे में जिन लोगों को कन्या नहीं होती है वो लोग भी इस दिन तुलसी जी का विवाह करके इस पुण्य को पा सकते हैं।
क्या है मान्यताएं
Dev Uthani Ekadashi जिसे Prabodhini Ekadashi भी कहा जाता है। इसे पापमुक्त करने वाली एकादशी भी माना जाता है। वैसे तो सभी एकादशी पापमुक्त करने वाली मानी जाती हैं, लेकिन इसका महत्व अधिक है। इसके लिए मान्यता है कि जितना पुण्य राजसूय यज्ञ करने से होता है उससे अधिक देवउठनी एकादशी के दिन होता है। इस दिन से चार माह पूर्व देवशयनी एकादशी मनाई जाती है। इसके लिए माना जाता है कि भगवान विष्णु समेत सभी देवता क्षीर सागर में जाकर सो जाते हैं। इसलिए इन दिनों पूजा-पाठ और दान-पुण्य के कार्य किए जाते हैं। किसी तरह का शुभ कार्य जैसे शादी, मुंडन, नामकरण संस्कार आदि नहीं किए जाते हैं।
ये जानना भी जरुरी
एकदशी साल के 12 महीनों में कुल 24 आती है। मतलब एक महीने में दो एकदशी पड़ती हैं। सभी एकादशी में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी को देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन के धार्मिक मान्यता है कि इस दिन श्री हरि राजा बलि के राज्य से चातुर्मास का विश्राम पूरा करके बैकुंठ लौटे थे। इसके साथ इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है।