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महाराष्ट्र और बिहार की स्थिति
महाराष्ट्र और बिहार ने क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर अपनी जगह बनाई है, जहां 1,85,765 और 1,67,161 मरीजों का नोटिफिकेशन हुआ है। इससे यह साफ है कि उत्तर प्रदेश ने अपनी रणनीतियों के माध्यम से बाकी राज्यों से बेहतर प्रदर्शन किया है।
सफलता के पीछे प्रमुख कारण
टीबी उन्मूलन के इस मिशन में कई कारक जिम्मेदार रहे हैं। प्रमुख रूप से सरकार द्वारा हर माह की 15 तारीख को मनाया जाने वाला एकीकृत निक्षय दिवस, एक्टिव केस फाइंडिंग (एसीएफ) अभियान, और बार-बार चलाए जाने वाले दस्तक अभियान का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इसके साथ ही प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी भी उल्लेखनीय रही, जिसमें प्राइवेट डॉक्टरों के माध्यम से 2 लाख से ज्यादा मरीजों का पंजीकरण किया गया। यह कुल संख्या का लगभग 40% है। खास बात यह है कि आगरा, मथुरा, झांसी, कानपुर, मेरठ और मुरादाबाद में निजी डॉक्टरों ने सरकारी डॉक्टरों से भी बेहतर प्रदर्शन किया है। यह भी पढ़ें:
लखनऊ, गोरखपुर में सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों का समान योगदान
विशेषज्ञों के अनुसार, लखनऊ, गोरखपुर, और बरेली जैसे जिलों में सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों का योगदान बराबर का रहा। इससे यह साबित होता है कि प्रदेश में निजी और सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अच्छा तालमेल है।
अवसर और चुनौतियां
हालांकि, कुछ जनपदों में सुधार की गुंजाइश है। उदाहरण के लिए, श्रावस्ती में केवल 38 प्राइवेट नोटिफिकेशन हुए हैं, जबकि महोबा, संतरविदास नगर, और अन्य जिलों में भी यह संख्या काफी कम है। इन जिलों में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है ताकि राज्य के हर हिस्से में टीबी उन्मूलन की प्रक्रिया तेज हो सके। यह भी पढ़ें:
2025 तक टीबी मुक्त उत्तर प्रदेश का लक्ष्य
राज्य टीबी अधिकारी डॉ. शैलेंद्र भटनागर ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशानुसार, वर्ष 2025 तक उत्तर प्रदेश को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य है। यह मिशन युद्धस्तर पर जारी है, और प्रदेश लगातार केंद्र द्वारा दिए गए लक्ष्यों से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। पिछले साल भी राज्य ने 5.5 लाख के लक्ष्य के मुकाबले 6.33 लाख मरीजों की पहचान की थी, यानी 115% लक्ष्य की प्राप्ति की थी। यह उपलब्धि एक बार फिर यह दर्शाती है कि उत्तर प्रदेश टीबी उन्मूलन के राष्ट्रीय मिशन में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।