लखनऊ.अवध नगरी में बाबा मनकामेश्वर लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। भगवान शिव शंकर के प्राचीन मंदिरों में से एक इस मंदिर का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। मान्यता यह है की जब श्री राम अपनी माता सीता को वनवास छोड़कर वापस लौटे तो उन्होंने गोमती के किनारे इसी जगह पर भगवन शंकर की आराधना की थी। उन्होंने इस स्थान पर आकर सीता जो को छोड़ने का दुःख प्रकट किया था।
कालांतर में उस स्थान पर मनकामेश्वर मंदिर की स्थापना कर दी गई। मान्यता है की इस मंदिर में आने वाले भक्तों की मुरादे पूरी होती हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को यहां आने वाली कन्या को मनचाहा वर मिलता है।
मंदिर का निर्माण राजा ने करवाया था ऐसा कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण राजा हिरण्यधनु ने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के बाद किया था। मंदिर के शिखर पर सुसज्जित 23 स्वर्णकलश उसकी शोभा को बढ़ाते हैं। कहा जाता है की दक्षिण के शिव भक्तों और पूर्व के तारकेश्वर मंदिर के उपासक साहनियों ने मध्यकाल तक इस मंदिर के मूल स्वरुप को बनाए रखा था।मौजूदा समय में मंदिर का भव्य निर्माण सेठ पूरण शाह ने करवाया।
मंदिर की मान्यता इस मंदिर की मान्यता है की सच्चे मन से आकर यहां जो भी मुरादे मांगी जाए भोले बाबा उसे हर हाल में पूरा करते हैं। सावन के हर सोमवार को यहाँ भक्तों की भीड़ लगती है। सावन के पहले दिन मंदिर की महंत देव्या गिरी जी महाराज ने शिव बाबा का अभिषेक कर विशेष पूजा अर्चना की। दर्शनीय है शिलिंग मंदिर में काले रंग के शिवलिंग हैं। उन पर चांदी का छत्र विराजमान होने के साथ मंदिर के पूरे फर्श में चांदी के सिक्के लगे होने से यह मंदिर मनोहारी लगता है।