भाई-बहन के अनूठे प्रेम की सच्ची कहानी शुरू होती है साल 1972 से, जब उत्तर प्रदेश के जालौन का रहने वाला मुकेश का परिवार लखनऊ पहुंचा। अपनी पहचान छिपाते हुए मुकेश बताते हैं कि उनके तीन बहनें थीं। बड़ी बहन की शादी लखनऊ शहर में की गई थी। इसी के चलते उनका परिवार भी लखनऊ आकर रहने लगा था। साल 1972 में उनकी बड़ी बहन का निधन हो गया।
पति की मृत्यु के बाद ससुराल पक्ष ने मुकेश की बहन और उनके तीनों बच्चों का खर्चा उठाने से मना कर दिया। ऐसे में यह तय करना था कि अब उनकी बहन और उनके बच्चे कहां रहेंगे। मुकेश ने अपनी पत्नी को समझा-बुझाकर बहन और उनके बच्चों को अपने घर ले आए। मुकेश उस वक्त जल संस्थान में असिस्टेंट इंजीनियर थे। उन्होंने अपनी बहन और उनके बच्चों का खर्चा उठाने का फैसला लिया।
मुकेश बताते हैं कि बहन पर संकटों के बादल घिरते ही लोगों ने उसकी दूसरी शादी करने की सलाह देनी शुरू कर दी। पारिवारिक लोगों के दबाव के बावजूद मुकेश ने अपनी बहन की इच्छा जानने की कोशिश की, बहन ने दूसरी शादी से इनकार कर दिया। आज उनके घर में लगभग आठ लोग रहते हैं। संयुक्त परिवार है, एक दूसरे की मुसीबत में सब साथ खड़े रहते हैं। मुकेश आज तक अपनी बहन के द्वारा कलाई पर बांधी गई राखी यानी रक्षा सूत्र का असली अर्थ निभा रहे हैं।