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लखनऊ

भाजपा के हो सकते हैं राजा भैया और अभय सिंह

राजा-अभय सिंह ने की राजनाथ सिंह से मुलाक़ात

लखनऊJan 15, 2017 / 06:46 pm

Dikshant Sharma

raja bhaiya abhay singh

raja bhaiya abhay singh

लखनऊ। समाजवादी पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। इस बीच लगातार सामाजवादी पार्टी से लगातार पलायन चल रहा है। पहले सपा के राष्ट्रीय महासचिव रह चुके अशोक प्रधान भाजपा में शामिल हुए और उसके बाद सपा विधायक राजा अरिदमन सिंह। ताज़ा जानकारी के अनुसार प्रतापगढ़ के कुंडा विधायक रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) फैज़ाबाद के गोसाईगंज से सपा विधायक अभय सिंह के साथ गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाक़ात की।

राजा भैया अभी देते हैं समाजवादी पार्टी को समर्थन

राजा भैया मौजूदा समय में समाजवादी पार्टी को अपना समर्थन देते हैं और अभय सिंह खुद समाजवादी पार्टी से जुड़े हैं। राजा इस समय कैबिनेट मंत्री भी हैं। अब ऐसे में राजनाथ से मिलने के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि राजा अपने साथ कई अन्य ठाकुर विधायकों का समर्थन आगामी विधान सभा चुनाव में भाजपा को दे सकते हैं। ऐसे स्थिति में भाजपा को 30 से अधिक विधायकों का समर्थन मिल सकता है।

राजा का भाजपा से है पुराना नाता
भाजपा ने साल 2000 में राजनाथ सिंह को मुख्यमंत्री बनाया। 2002 का विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा। वो अलग बात रही कि वह सत्ता में वापसी में नाकाम रही। लेकिन आज भाजपा के पास कई बड़े ठाकुर चेहरे हैं जो चुनावी सीजन में पूरी ‘बैटिंग’ कर रहे हैं। राजनाथ सिंह मौजूदा में गृहमंत्री और लखनऊ से संसद हैं। राजा भैया की राजनाथ सिंह से करीबियां है। कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह की सरकार में दोनों में ही राजा भैया को कैबिनेट पद दिया जा चुका है। चुनाव को देखते हुए राजनाथ की सक्रियता प्रदेश में बढ़ गयी है और इनके साथ और भी कई ठाकुर नेताओं का अच्छा हुजूम जुड़ा हुआ है। राजा भैया के अलावा अयोध्या से संसद लल्लू सिंह, योगी आदित्यनाथ और संगीत सोम जैसे बड़े ठाकुर चेहरे भाजपा के लिए ठाकुर वोटों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पश्चिम और पूर्वी प्रदेश में भाजपा की मजबूत स्थिति के पीछे का कारण भी यही है।


क्यों हैं ठाकुर वोट ख़ास

मौजूदा पूरे प्रदेश से ठाकुर 78 विधायक हैं और 14 सांसद हैं। प्रदेश में अधिकतर जातियां सत्ता का रुख बदलने का दम-खम रखती हैं लेकिन ठाकुर वोटरों की अहमियत अगल ही है। ठाकुर वोटर तादाद में भले ही कम हों लेकिन उनका समर्थन हर राजनीतिक दलों के लिए ख़ास रहा है। इसे देखते हुए 2007 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दल जहां- ब्राम्हण, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वोटरों को लुभाने में लगे हैं, वहीं करीब सात फीसदी क्षत्रिय वोटरों को लुभाने की भी होड़ सी लगी है। ‘ठाकुर’ नेताओं का लोहा मौजूदा समय में भी दीखता है।

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