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लखनऊ

मिशन 2022 : पार्टियों को आयी वफादारों की याद, रेवड़ियां बांटने की कवायद शुरू

– भाजपा निगम अध्यक्षों में करेगी समायोजित- सपा की निगाह बसपा के बागी चेहरों पर- कांग्रेस अल्पसंख्यक नेताओं पर लगा रही दांव

लखनऊJun 04, 2021 / 06:04 pm

Mahendra Pratap

मिशन 2022 : पार्टियों को आयी वफादारों की याद, रेवड़ियां बांटने की कवायद शुरू

मिशन 2022 : पार्टियों को आयी वफादारों की याद, रेवड़ियां बांटने की कवायद शुरू

पत्रिका इंडेप्थ स्टोरी

महेंद्र प्रताप सिंह

लखनऊ. उप्र में विधानसभा के चुनाव 2022 में होने हैं। मार्च-अप्रेल में प्रस्तावित चुनाव के लिए सभी दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। पार्टी के रूठे पदाधिकारियों को मनाया जा रहा है। तो जिनकी निष्ठा संदिग्ध है उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। ताकि चुनाव के ऐन वक्त वे कोई नुकसान न पहुंचा सकें। भाजपा ने पिछले चार साल में पार्टी और सरकार के कामकाज की कोई समीक्षा नहीं की। लेकिन अब जबकि चुनाव में 7-8 महीने का वक्त रह गया है तब सत्ता और संगठन में तालमेल बैठाने के लिए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बैठकें कर रहा है। सरकार के कामकाज की समीक्षा की जा रही है। लंबे से उपेक्षित पार्टी के वफादार कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को महत्वूपर्ण पद देकर उपकृत करने का प्रयास किया जा रहा है। यूपी में अपना जमीनी आधार खो चुकी कांग्रेस भी अपनी जड़ें फिर से जमाने के प्रयास में जुटी है। कांग्रेस के कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं। कोरोना के ही बहाने गांव-गांव दवाइयां और मास्क बांटे जा रहे हैं। पार्टी ने पुराने कार्यकर्ताओं को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी देकर उन्हें सक्रिय करने का काम किया है। समाजवादी पार्टी भी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में उन्हीं को उम्मीदवार बना रही है जो पार्टी के लॉयल हैं और आगामी विधानसभा चुनाव में सपा की जीत में सहायक हो सकते हैं। लेकिन इन सबके ठीक उलट बहुजन समाज पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर संगठन की पेंच कसते हुए पार्टी के दो वफादारों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि एक ओर जहां सभी दल अपने वफादारों को खुश करने में जुटे हैं वहीं मायावती निष्ठावानों को बाहर कर आखिर क्या संदेश देना चाहती हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती चुनाव पूर्व कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहतीं इसलिए अभी से पार्टी के असंतुष्ट और दागी चेहरों को पार्टी से निष्काषित कर दे रही हैं।
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भाजपा आयोग और निगमों में कार्यकर्ताओं को देगी पद

भाजपा प्रदेश में तमाम निगम आयोगों और प्रकोष्ठ में खाली जगहों पर अपने कार्यकर्ताओं को समायोजित करने जा रही है। आने वाले 1 महीने में तमाम पदों पर नियुक्तियां कर ली जाएंगी। इससे कार्यकर्ताओं की नाराजगी कम करने की कोशिश होगी। अल्पसंख्यक आयोग, अनुसूचित जाति आयोग, अन्य पिछड़ा आयोग में अध्यक्ष पद खाली है। जबकि भाजपा में महिला मोर्चा, किसान मोर्चा, युवा मोर्चा अनुसूचित जाति मोर्चा, अन्य पिछड़ा वर्ग मोर्चा और अल्पसंख्यक मोर्चा में अध्यक्ष पद को भरा जाएगा। इसी तरह भाजपा के विभिनन प्रकोष्ठों में नियुक्तियां करके कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया जाएगा।
कांग्रेस में इमरान प्रतापगढ़ी सहित कई को बड़ी जिम्मेदारी

चुनाव पूर्व कांग्रेस ने शायर इमरान प्रतापगढ़ी को कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का अध्यक्ष बनाया गया है। इसी तरह इमरान मसूद को पार्टी का महासचिव बनाने के साथ ही दिल्ली यूनिट का प्रभारी बनाया गया है। जबकि बृजलाल खाबरी को एआइआइसी में सेेक्रेटरी और बिहार का प्रभारी बनाया गया है। कांग्रेस सेवा संगठन के जरिए भी जमीनी स्तर पर उतर कर कार्य कर रही है। प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश की इकाई को भी सक्रिय करने का प्रयास किया है। युवा और सक्रिय कार्यकर्ताओं को ज्यादा तरजीह दी जा रही है। खासकर मुस्लिम चेहरों को और अधिक जिम्मेदारियां देकर उन्हें और सक्रिय करने का प्रयास किया जा रहा है।
बसपा से बिछड़े सभी बारी-बारी

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर पार्टी के दो पुराने लॉयलिस्टों को बाहर का रास्ता दिया है। विधायक लालजी वर्मा और राम अचल राजभर बसपा के शुरुआती दिनों के साथी थे इन्हें निष्काषित कर दिया गया है। मायावती का आरोप है कि ये दोनों विधायक अपने पूर्व साथियों की तरह किसी और दल का दामन थामने की कोशिश में थे। लोकसभा चुनाव के बाद से अब तक बीएसपी के तकरीबन दो दर्जन से ज्यादा सीनियर नेता, पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष बसपा छोड़ सपा का दामन थाम चुके हैं। पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज के बसपा छोडऩे के बाद यह सिलसिला जारी है। हालत यह है कि बसपा के 19 विधायकों में से सिर्फ सात ही अब बचे हैं।

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