गंगोत्री से है शुरूआत :- हरिद्वार, ऋषिकेश होते हुए जब उत्तरकाशी पहुंचा तो अचंभित रह गया। देखो तो सामने थी पावन, निर्मल मां गंगा। उन्होंने मुझे देखा, मुस्कुराई और हाथ पकड़कर साथ ले लिया। फिर मां गंगा ने शुरू की अपनी कहानी। कहा, यहां से 100 किलोमीटर दूर गंगोत्री धाम हैं, जहां मैं बिराजती हूं। 18वीं शताब्दी में मेरे इस मंदिर का यहां निर्माण कराया गया था। यह तीर्थ स्थल समुद्र तल से 3140 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। पुराणों में इसके बारे में कहा जाता है कि हिमालय की गोद में बसा यह तीर्थ स्थल जहां मां गंगा ने धरती को कृतार्थ किया था। स्वर्ग की बेटी गंगा देवी ने नदी का रूप लेकर राजा भागीरथ के पूर्वजों को पाप मुक्त किया था। पुराणों में मेरे बारे में यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव ने गंगा के वेग को कम करने के लिए उन्हें अपनी जटाओं में लिया था। वैसे तो मेरा उद्गम गौमुख से हुआ है। जो कि गंगोत्री से 18 किलोमीटर दूर बर्फ के पहाड़ों में हैं।
दुर्गम और जटिल रास्तों में बर्फ सबसे बड़ी बाधक होती है। वहां ऑक्सीजन भी कम हो जाती है। बीच में रूकने के इंतजाम भी नहीं हैं। सिर्फ लाल बाबा का एक इकलौता आश्रम है, जहां रात्रि विश्राम किया जा सकता है। हां, यह जरूर है कि आज भी मेरे गौमुख से आगे तपोवन हैं, जहां अभी भी साधु-संत साधना में तल्लीन हैं। गौमुख तक जाने के लिए गंगोत्री से आगे मौनी बाबा का आश्रम हैं। वहां से आगे भोजवासा है। लाल बिहारीजी का आश्रम हैं। वहां ठहरकर गौमुख तक जाया जा सकता है। यहां चारों ओर जो बर्फ देख रहे हो, वो बर्फ नहीं। बल्कि मेरा रजत जड़ित मुकुट है। जो मुझे श्वेत रूप में बहते हुए देख रहे हो, वो मेरा चांदी के आभूषणों से किया गया शृंगार है। एक बात और बताती हूं। अभी गोमुख नहीं जा पाने का कारण बताती हूं। चारों ओर जिस तरह का प्रदूषण फैला हुआ है।
ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति है। उसने सारे मौसम का तंत्र बिगाड़ रखा है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक यहां शोध करने आते हैं। कोई कहता है कि ग्लेशियिर पीछे की ओर सरक रहे हैं। मुझे भी यह लगता है। कुछ वैज्ञानिक गौमुख पर चर्चा कर रहे थे, पिछले 40 साल में गौमुख करीब एक किलोमीटर पीछे सरक गया। सचाई तो मुझे भी लगती है। बाकी तो सब इस धरती के लोगों के शोध के विषय हैं।
गंगा के मुख से कहानी सुनकर मैं स्तब्ध :- गंगा के मुख से कहानी सुनकर मैं स्तब्ध था। मां ने कहा, पकड़ो हाथ और चलो। हम शुरू करते हैं उत्तरकाशी से लेकर गंगोत्री तक का पूरा सफर। करीब 100 किलोमीटर के इस सफर में बहुत कुछ जानने का मौका मिलेगा। देवदार व चीड़ के वृक्ष, ऊंचे-ऊंचे कच्चे-पक्के पहाड़। पहाड़ों से दरकती शिलाएं । दुर्गम रास्ते। सीमा सड़क संगठन के बनाए सुगम रास्ते। जगह-जगह बहते झरने। कुछ जगह मुझे बांध बनाकर रोकने की कोशिश की, जो कि मनुष्य की बहुत बड़ी गलतफहमी है। गंगा को कोई नहीं रोक सकता। अच्छा, यदि रोक पाते तो क्या केदारनाथ और अन्य जगह मेरा रूद्र रूप देखने को मिलता। मुझे रोककर मेरे पानी को यदि अच्छे काम में लिया जाता है तब तक ही मैं मनुष्य के साथ हूं। मेरे प्रकृति रूपी शृंगार को जब जब भी छेड़ने की कोशिश की जाएगी, तब तब मेरा विकराल रूप की उत्पन्न होगी।
काली गंगा में तब्दील कर दिया मुझे :- सुनो, आज मनुष्य इतना स्वार्थी हो चुका कि वो गंगा की पवित्रता को नष्ट करने से भी नहीं चूक रहा। उत्तरकाशी से लेकर गंगोत्री तक अभी मनुष्य की निगाहें नहीं पड़ी। किसी ने कल कारखाने या उद्योग लगाने की कोशिश नहीं की। यहां के लोग भी बहुत समझदार हैं। वे गंगा को मैली नहीं होने देते, चाहे कुछ भी हो जाए। लेकिन हरिद्वार, ऋषिकेश से जो मुझे मैला करने का सिलसिला शुरू होता है, वो इलाहाबाद, बनारस जाते-जाते काली गंगा के रूप में तब्दील कर देता है। हालांकि कोरोना के कारण शुरू हुए लाकडाउन से मुझे सांस लेने में आसानी हुई है। प्रदूषित जल को मुझे में नहीं छोड़ा जा रहा है। नमामि गंगे में करोड़ों रुपए खर्च करके जो फायदा नहीं हुआ, वो अकेले वायरस ने कर दिखाया।
गंगा का पानी अमृत :- गौमुख से गंगोत्री होते हुए जो मेरा बहाव शुरू होता है, वैसा ही आदिकाल में सब जगह तक था। मेरे बहाव के साथ बड़े-बड़े पत्थर, कंकर, रेत साथ चलती है और वनस्पतियां टकरारकर साथ हो लेती है। इस पानी में इतनी ताकत आ जाती है कि पीढ़ियां गुजर जाती है, लेकिन मेरा पानी कभी खराब नहीं होता। आजकल दुनिया भर में मिनरल वाटर के रूप में बोतल बंद पानी पिया जा रहा है। यदि मेरे पानी को ही साफ रखें तो इससे बढ़िया मिनरल वाटर भारत के लोगों को कहां मिल सकता है। सचाई तो यह है कि मनुष्य इतना स्वार्थी हो चुका कि वो अपने क्षणिक लाभ और निहित स्वार्थों के चलते किसी भी स्तर पर गिर सकता है। उसका प्रमाण देने की जरूरत नहीं है। जिसने मां गंगा को ही मैली कर दिया हो, उससे कैसे उम्मीद की जा सकती है।
सख्ती की जरूरत :- मनुष्य जब स्वेच्छा से नहीं मानें तो सख्ती की जरूरत है। अब देखो, उत्तरकाशी के मजिस्ट्रेट ने नियम बना दिए कि उत्तरकाशी पवित्र तीर्थ स्थल में पर्यावरण एवं साफ सफाई के लिए धारा 144 लागू है। इसके तहत पॉलीथिन, कैरीबैग और प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध है। उल्लंघन करने पर आईपीसी धारा 188 के तहत छह महीने की सजा और एक हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।
दूध सी गंगा :- मां गंगा ने कहा, मनेरी से चार किलोमीटर पहले रास्ते संकरे हैं। एक वाहन बमुश्किल निकल सकता है। जरा सी असावधानी बड़ा हादसा कर सकती है। मेरी भुजाओं के रूप में चारों ओर खड़े बड़े—बड़े पर्वतों के पत्थर अपनी उम्र के साथ दरक जाते हैं, उनके साथ विशालकाय पेड़ भी धराशायी हो जाते हैं। इससे घबराने और विचलित होने की जरूरत नहीं है। यह तो सतत् प्रक्रिया है। आगे चलो, यह जगह है भटवाड़ी। यहां देखो, गंगा पानी कितना निर्मल है। जबकि अभी गंगोत्री दूर है। यहां लोग रहते हैं लेकिन गंगा की स्वच्छता पर आंच नहीं आने देते। यहां भी गंगा का पानी दूध सा ही श्वेत नजर आता है। गंगनानी, यह वो अद्भुत स्थल है, जहां मां गंगा का दूसरा स्वरूप है। शीतल, शांत गंगा उष्ण (गर्म) रूप में बहती नजर आती है। गर्म पानी के कुण्ड और झरने हैं। यहां दूसरी ओर देख लो, इतने चौड़े पाट में भी गंगा कितनी निर्मल है।
मां गंगा ने कहा देखो, सामने पहाड़ी पर :- हर्षिल की ओर जब बढ़े तो मां गंगा ने कहा, देखो, सामने पहाड़ी पर मेरा रजत मुकुट सजा हुआ दिख रहा है ना। दूसरी पहाड़ि़यों ने भी श्वेत शृंगार किया है। देवदार के पेड़ों ने भी इसी चांदी से खुद को सजाया है। लोहाली नागा में मेरे पानी पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगा दिया। इससे पहले मनेरी में भी बांध बांधकर मेरे पानी रोकने की कोशिश की गई है। कितना भी कुछ कर लो, लेकिन मेरे साथ चलकर तुमने देखा ना, चारों ओर मैं ही मैं बह रही हूं। जो झरने देख रहे हो वो भी मैं हूं। नदी के रूप में जिसे निर्मल कह रहे हो, वो भी मैं ही हूं। मेरे बहाव के साथ जो संगीत सुनाई दे रहा है, जिसे कल-कल ध्वनि का नाम दिया जा रहा है, ऐसा भला कहीं संभव है।
बाल शिव का प्राचीन मंदिर :- गंगोत्री से पहले यह बाल शिव का प्राचीन मंदिर है। इसे बाल कण्डार मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। अच्छा इसके बारे में तुम इसके पुजारी से पूछ लो। पुजारी सिर्फ आवाज सुन पा रहा था, लेकिन यह नहीं समझ पा रहा था कि आवाज कहां से आ रही है। वो मेरे चेहरे को देखे जा रहा था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि गंगोत्री धाम का प्रथम पूजा स्थल यही है। गंगा मां के दर्शन से पहले बाल शिव के दर्शन जरूरी माने जाते हैं। इसके बिना यात्रा अधूरी होती है। यह मंदिर 1442 बीसीसी का है। कहीं प्राकृतिक आपदा से कितना भी नुकसान हो जाए, लेकिन मंदिर को कभी नुकसान नहीं होता।
केदारनाथ तबाही का असर नहीं पड़ा :- इसी बीच मां गंगा ने कहा, दो साल पहले जो तबाही केदारनाथ में हुई, उसका असर गंगोत्री में नहीं हुआ। मंदिर के सामने वाला नाला जरूर तेज बहा लेकिन मेरा मंदिर तो वैसा का वैसा ही रहा। थोड़ा आगे बढ़े तो लंका घाटी आ गई। मां मुस्कुरा कर कहा, देखो, कौन साधु बैठा है। इससे भी जरा पूछ लो। मैंने वहां श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के महंत श्री विजयगिरी जी से मुलाकात की। वो बताते हैं कि पिछले 90 साल का तो मुझे याद है, यहां मां की अखण्ड ज्योति जलती है, इससे पहले का पता नहीं। उन्होंने कहा कि बेटा, यहां अभी मनुष्य के कारोबारी कदम नहीं पड़े, वरना यह जगह भी हरिद्वार, ऋषिकेश, बनारस और इलाहाबाद बन जाती।
गंगा को कभी मैले मत होने देना :- जैसे ही हाथ पकड़कर गंगोत्री की ओर बढ़े तो सामने देखा पहाड़ियों के बीच में से गंगा तेजी से बहती हुई आ रही है। इतना स्वच्छ पानी जिसके बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पहाड़ियों पर बर्फ यूं नजर आ रही थी, मानो गंगा ने चांदी का मुकुट धारण कर रखा हो। गंगोत्री में गंगा पानी के रूप में नही बल्कि दूध के रूप में बहती नजर आई। यहां गंगा ने सिर पर हाथ फेरा और कहा, गंगा को कभी मैले मत होने देना।