भगवती प्रसाद दीक्षित का अपना एक स्टाइल था। वह शहर के हर मोहल्ले में अकेले जाते थे। साइकिल, गाड़ी, रिक्शा या टेम्पो से नहीं चलते थे वे। अपना अंदाज था। पूरे हिस्टपुस्ट घोड़े से चलते थे। प्योर लेदर की घोड़े पर बैठने वाली जींस ही होती उनकी। कभी काले घोड़े पर, तो कभी कत्थई घोड़े पर और कभी कभी वह सफेद घोड़े पर सवारी करके आते थे। मोहल्लों के हर उस चौराहे और ठिकाने पर खड़े होते थे जहां भीड़ भाड़ हो। चाय की दुकान हो। घोड़े से उतर कर वह चाय पीते। लोगों से मिलते। बात चीत करते।
उनका पहनावा बिल्कुल फिल्मी था। लोग उन्हें रॉबिनहुड आफ कानपुर कहते थे। सिर पर एक बड़ा सा हैट होता था। हैट में दबे हुए बड़े-बड़े घुंघराले बाल और हल्की सफेद फ्रेंचकट दाढ़ी उनका अलग लुक देती थी। सफेद शर्ट के ऊपर काली हाफ जैकेट और टाइट पतलून और उसके नीचे लांग ***** पहनते थे। उनके घोड़े पर एक सफेद रंग का झंडा लहराता था, जिस पर लिखा होता था एकला चलो रे…। जब वे घोड़े पर चलते थे तो क्षेत्र के युवा उनके पीछे पीछे स्वत: चलने लगते थे और नारे लगाते- हाय-हाय न किच-किच, भगवती प्रसाद दीक्षित।