भाजपा इस बार भी ध्रुवीकरण की पगडंडी पर चलती दिखाई दे रही है। धारा 370, राम मंदिर और सीएए उसके हथियार हैं। इससे इतर 2019 के चुनाव में सपा, बसपा और रालोद का गठबंधन था। कांग्रेस का किसी से मेल नहीं था। भाजपा पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ गठबंधन के साथियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी। इस बार सपा और कांग्रेस का गठबंधन है तो रालोद अब एनडीए का हिस्सा है। बसपा अकेले चुनावी रण में है।
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अजित सिंह 2019 के चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के साथ मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar Lok Sabha seat) से चुनाव लड़े थे और मामूली अंतर से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। गाजियाबाद के मौजूदा सांसद जनरल वीके सिंह और मेरठ के तीन बार के सांसद राजेंद्र अग्रवाल के टिकट को भी लेकर फिलवक्त अटकलें हैं। वहीं बागपत सीट रालोद के खाते में जाने से मौजूदा सांसद सत्यपाल सिंह चुनाव से बाहर हो गए हैं। रालोद ने यहां से डॉ. राजकुमार सांगवान को अपना प्रत्याशी बनाया है। मेरठ से याकूब कुरैशी चुनाव लड़ेंगे इसकी संभावना बहुत कम है। पिछली बार वह सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी थे और बसपा के टिकट पर मैदान में थे।