अधिकांश स्मारकों को सम्राट अशोक ने बनवाया है हालांकि यह शहर यहां फैली बौद्ध
धर्म की जड़ों की वजह से ज्यादा विख्यात है। इस शहर में 3 और 5 वीं
शताब्दी के कई प्राचीन स्तुप और विहार स्थित हैं। इनमें से अधिकाशः
स्मारकों को मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया है। 19 वीं सदी में
पुर्नविष्कार करने से पूर्व, कुशीनगर केवल एक खंडहरों का शहर था, जहां
पहले हुए कई हिंसक हमलों के कारण इस शहर को काफी क्षति हुई थी।
कुशीनगर और उसके आसपास स्थित पर्यटन स्थल
कुशीनगर
में अधिकाशः आकर्षण स्थल और जगह, भगवान बुद्ध से जुड़ी हुई हैं। यहां
महापरिनिर्वाण मंदिर स्थित है, जिसमें भगवान बुद्ध की 6 मीटर लम्बी
प्रतिमा रखी हुई है। निर्वाण स्तुप का पता भी 1876 में लगाया गया था।
रामभर स्तुप वह स्थल है जहां भगवान बुद्ध का अंतिम सस्ंकार हुआ था। यहां
के खूबसूरत मेडीटेशन पार्क में शानदार प्राकृतिक बगीचे और कृत्रिम जल
निकाय बने हुए हैं। जिसको देखकर आपका मन यहां बार-बार आने को करेगा। इस शहर में खुदाई करके अवशेषों को निकाला गया और उन सभी
को कुशीनगर संग्रहालय में रखा गया है।
कुशीनगर की एक खास पहचान हैएक प्रमुख बौद्ध तीर्थ
यात्रा स्थल होने के कारण कुशीनगर की एक खास पहचान है। यहां साल भर कई
श्रद्धालु, पर्यटक, बौद्ध भिक्षु आते हैं, इसके अलावा जिन लोगों को बौद्ध
धर्म में रूचि और विश्वास है वह भी यहां अध्ययन और अनुसंधान के लिए आते
हैं।
वास्तु कलाआें का रोचक मिश्रण हैउदाहरण के लिए यहां का वाट थाई मंदिर, भगवान बुद्ध को समर्पित
है, लेकिन इसकी वास्तुकला ठेठ थाई है और भारतीय शैली से बिल्कुल अलग है।
चाइनीज मंदिर भी भगवान बुद्ध को समर्पित है जैसा कि नाम से ही पता चलता है
कि इसकी वास्तुकला, विशिष्ट चीनी होगी। यहां का इंडो-जापानी मंदिर दो
अनूठी वास्तुकलाओं को रोचक मिश्रण है।
बौद्ध स्थलों के अलावा,
कुशीनगर में सूर्य मंदिर भी है जिसे मूल रूप से गुप्त काल के दौरान बनवाया
गया था। हालांकि, इस मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार हो चुका है और पिछली बार
इसका पुर्नरूद्धार 1981 में करवाया गया था। इस मंदिर में जन्माष्टमी के
दिन विशेष रूप से भीड़ रहती है। इसके अलावा, यहां कई दर्शनीय स्थल
हैं जैसे कुबेर अष्टन जो भगवान शिव को समर्पित मंदिर है। यहां के दवराहा
अष्टन में जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां लगी हुई हैं और कुरकुरा अष्टन,
हिंदूओं की देवी को समर्पित मंदिर है।
कुशीनगर के त्योहारबुद्ध पूर्णिमाबुद्ध
पूर्णिमा का उत्सव अप्रैल या मई में पूर्णिमा के अवसर पर मनाया जाता है।
इस दिन भगवान बु्द्ध का जन्म हुआ था, जिन्होंने दुनिया को बौद्ध धर्म दिया। इस दिन यहां पर पर्यटकों की भारी भीड़ जुटती है।
प्रमुख पर्यटन स्थलनिर्वाण स्तूप
ईंट से बने इस स्तूप की खोज सन 1876 में कैरिल ने की थी। यह 2.74 मीटर ऊंचा है। ताम्रपटल पर बुद्घ संबंधी अभिलेख दर्ज हैं।
निर्वाण मंदिरयहां
भगवान बुद्ध की छह मीटर से अधिक लंबी लेटी हुई प्रतिमा है। इसकी खोज 1876
में हुई। यह प्रतिमा लाल बलुआ पत्थर से बनी हुई है। माना जाता है कि इसका
निर्माण पांचवीं शताब्दी में हुआ था।
माथाकुंवर मंदिरयह मंदिर
बुद्घ के परिनिर्वाण स्तूप से 400 गज दूरी पर है। यहां से बुद्ध की काले
पत्थर की प्रतिमा खोजी गई थी। बुद्ध ने यहां अंतिम बार अपने शिष्यों को सीख
दी थी।
रामाभर स्तूपयह एक बड़ा स्तूप है, जिसकी ऊंचाई 49 फुट
है। यह माथाकुंवर मंदिर से एक किमी. की दूरी पर है। यहां बुद्ध का अंतिम
संस्कार किया गया था। बौद्ध साहित्य में इस स्तूप को मुकुट-बंधन विहार कहा
गया है।
चीनी मंदिरइस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण बुद्ध की सुंदर प्रतिमा है।
जापानी मंदिरकुशीनगर के इस मंदिर में भगवान बुद्ध की अष्टधातु से बनी सुंदर प्रतिमा है। इसे जापान ने बनवाया है।
कैसे पहुंचेंकुशीनगर तक एयर, रेल और सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।
रेल-
अगर आप दिल्ली से आते हैं तो गोरखपुर तक ट्रेन से आ सकते हैं, उसके बाद
यहां से आप बस या प्राइवेट टैक्सी से कुशीनगर जा सकते हैं। गोरखपुर से
कुशीनगर की दूरी 52 किलोमीटर है।
बस- दिल्ली से आप बस से भी यहां आ सकते। दिल्ली ये यहां के लिए सीधी बस सेवा है।
एयर- कुशीनगर जाने के लिए आप गोरखपुर तक प्लेन से आ सकते हैं आैर यहां से प्राइवेट टैक्सी या बस से कुशीनगर जा सकते हैं।