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लखनऊ

इस शक्तिपीठ में 41 मंगलवार चढ़ाएं ‘कुमकुम’ का प्रसाद, हो जाएंगे मालामाल

Chaitr Navratri 2023 : वैसे तो पूरे देश में 51 शक्तिपीठों की मान्यता है, इसमें से पांच प्रमुख शक्तिपीठ उत्तर प्रदेश में हैं। इसमें एक शक्तिपीठ ऐसा है, जहां 41 मंगलवार कुमकुम का प्रसाद चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

लखनऊMar 24, 2023 / 07:01 am

Vishnu Bajpai

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वैसे तो पूरे देश में 51 शक्तिपीठों की मान्यता है, इसमें से पांच प्रमुख शक्तिपीठ उत्तर प्रदेश में हैं। इसमें एक शक्तिपीठ ऐसा है। जहां की मान्यता है कि 41 मंगलवार यहां कुमकुम का प्रसाद चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हमने आपको सहारनपुर में स्थित शाकंभरी देवी और प्रयागराज में स्थित ललिता देवी शक्तिपीठ के बारे में बताया है। इसी कड़ी में अब इस शक्तिपीठ के बारे में जानिए। यहां 41 मंगलवार नियमित रूप से कुमकुम का प्रसाद चढ़ाने पर भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
इससे पहले आपको हम बताएंगे कि धर्मग्रंथों में शक्तिपीठों के बारे में क्या लिखा गया है? देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। लेकिन भारत में शिवचरित्र के अनुसार ही 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। इस शक्तिपीठ के बारे में जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि शक्तिपीठों की स्‍थापना कैसे और क्यों हुई, तो आइये जानते हैं यह शक्तिपीठ कैसे बने?
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आखिर कैसे बने ये शक्तिपीठ?
शिवचरित्र और तंत्रचूड़ामणि के अनुसार “जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए।” आइये अब इस शक्तिपीठ के बारे में बताते हैं।
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काशी-वाराणसी में स्थित है विशालाक्षी शक्तिपीठ
तंत्रचूड़ामणि के अनुसार उत्तरप्रदेश के काशी में मणि‍कर्णिक घाट पर माता के दाहिने कान के मणिजड़ित कुंडल गिरे थे। माता सती को विशालाक्षी भी कहा जाता है। विशालाक्षी का अर्थ है, ‘बड़ी-बड़ी आंखों वाला’। इसलिए इस शक्तिपीठ का नाम विशालाक्षी है। चूंकि यहां माता का दूसरा नाम मणिकर्णी भी है।
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इसलिए इसे मणिकर्णिका भी कहते हैं। यह काशी में मणिकर्णिका घाट के पास स्थित है। सात पवित्र पुरियों में से एक काशी को वाराणसी और बनारस भी कहते हैं। काशी विश्‍वनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर मीरघाट मुहल्ले में यह मंदिर स्थित है। जहां विशालाक्षी गौरी का प्रसिद्ध मंदिर तथा विशालाक्षेश्वर महादेव का शिवलिंग भी है।
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देवी भागवत में इस शक्तिपीठ को दिया गया पहला स्‍थान
काशी विशालाक्षी मंदिर का वर्णन देवीपुराण में किया गया है। ‘देवीपुराण’ में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। देवी भागवत के 108 शक्तिपीठों में सर्वप्रथम विशालाक्षी के नाम के उल्लेख मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार विशालाक्षी नौ गौरियों में पंचम हैं तथा भगवान् श्री काशी विश्वनाथ उनके मंदिर के समीप ही विश्राम करते हैं।
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जानिए कैसे की जाती है देवी की पूजा?
पौराणिक परंपरा के अनुसार विशालाक्षी माता को गंगा स्नान के बाद धूप, दीप, सुगंधित हार व मोतियों के आभूषण, नवीन वस्त्र आदि चढ़ाए जाएँ। देवी विशालाक्षी की पूजा-उपासना से सौंदर्य और धन की प्राप्ति होती है। यहां दान, जप और यज्ञ करने पर मुक्ति प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि यदि यहां 41 मंगलवार ‘कुमकुम’ का प्रसाद चढ़ाया जाए तो इससे देवी मां प्रसन्न होकर भक्त की सभी मनोकामना पूर्ण कर देती हैं।

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