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आखिर कैसे बने ये शक्तिपीठ?शिवचरित्र और तंत्रचूड़ामणि के अनुसार “जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए।” आइये अब इस शक्तिपीठ के बारे में बताते हैं।
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काशी-वाराणसी में स्थित है विशालाक्षी शक्तिपीठतंत्रचूड़ामणि के अनुसार उत्तरप्रदेश के काशी में मणिकर्णिक घाट पर माता के दाहिने कान के मणिजड़ित कुंडल गिरे थे। माता सती को विशालाक्षी भी कहा जाता है। विशालाक्षी का अर्थ है, ‘बड़ी-बड़ी आंखों वाला’। इसलिए इस शक्तिपीठ का नाम विशालाक्षी है। चूंकि यहां माता का दूसरा नाम मणिकर्णी भी है।
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इसलिए इसे मणिकर्णिका भी कहते हैं। यह काशी में मणिकर्णिका घाट के पास स्थित है। सात पवित्र पुरियों में से एक काशी को वाराणसी और बनारस भी कहते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर मीरघाट मुहल्ले में यह मंदिर स्थित है। जहां विशालाक्षी गौरी का प्रसिद्ध मंदिर तथा विशालाक्षेश्वर महादेव का शिवलिंग भी है।यूपी का एक ऐसा पर्वत, जिसे देवी मां ने दिया था कोढ़ी होने का श्राप, क्या आप जानते हैं?
देवी भागवत में इस शक्तिपीठ को दिया गया पहला स्थानकाशी विशालाक्षी मंदिर का वर्णन देवीपुराण में किया गया है। ‘देवीपुराण’ में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। देवी भागवत के 108 शक्तिपीठों में सर्वप्रथम विशालाक्षी के नाम के उल्लेख मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार विशालाक्षी नौ गौरियों में पंचम हैं तथा भगवान् श्री काशी विश्वनाथ उनके मंदिर के समीप ही विश्राम करते हैं।
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जानिए कैसे की जाती है देवी की पूजा?पौराणिक परंपरा के अनुसार विशालाक्षी माता को गंगा स्नान के बाद धूप, दीप, सुगंधित हार व मोतियों के आभूषण, नवीन वस्त्र आदि चढ़ाए जाएँ। देवी विशालाक्षी की पूजा-उपासना से सौंदर्य और धन की प्राप्ति होती है। यहां दान, जप और यज्ञ करने पर मुक्ति प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि यदि यहां 41 मंगलवार ‘कुमकुम’ का प्रसाद चढ़ाया जाए तो इससे देवी मां प्रसन्न होकर भक्त की सभी मनोकामना पूर्ण कर देती हैं।