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लखनऊ

कांशीराम पुण्यतिथि: बामसेफ, डीएस4 और बीएसपी के जन्मदाता को मायावती ने कुछ यूं किया याद

बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक और समाज सुधारक कांशीराम की 9 अक्टूबर को पुण्यतिथि है। कांशीराम ने ‘चमचा युग’ किताब लिखकर राजनेताओं की पोल खोल दी थी। आइए जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ अनसुने पहलुओं के बारे में।

लखनऊOct 09, 2024 / 10:47 am

Anand Shukla

Kanshi Ram Death Anniversary Mayawati paid tribute
बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि बुधवार को मनाई जाएगी। पिछले कुछ साल से बसपा कांशीराम जयंती और परिनिर्वाण दिवस के आयोजन मंडल स्तर पर करती रही है। बुधवार को बसपा सुप्रीमो मायावती दिल्ली स्थित बहुजन प्रेरणा केंद्र में प्रात: 10 बजे उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करेंगी।
वहीं, लखनऊ में पुराना जेल रोड स्थित कांशीराम स्मारक पर कार्यक्रम आयोजित किया गया है। इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तीन मंडलों को छोड़कर अन्य मंडल के कार्यकर्ता आएंगे और कांशीराम को श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे। कार्यक्रम में प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल मौजूद रहेंगे।

काशीराम जयंती पर बसपा प्रमुख ने दी श्रद्धांजलि

बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर बसपा मुखिया मायावती ने उन्हें नमन किया है। उन्होंने सोशल मीडिया ‘X’ पर पोस्ट करते हुए लिखा, “बामसेफ, डीएस4 और बीएसपी के जन्मदाता एवं संस्थापक बहुजन नायक मान्यवर श्री कांशीराम जी को आज उनके परिनिर्वाण दिवस पर शत- शत नमन व अपार श्रद्धा-सुमन अर्पित तथा यूपी और देश भर में उन्हें विभिन्न रूपों में श्रद्धांजलि अर्पित करने वाले पार्टी के सभी लोगों व अनुयाइयों का तहेदिल से आभार।”

अम्बेडकरवादी बीएसपी दलितों की है सही- सच्ची मंजिल

उन्होंने आगे लिखा, “गांधीवादी कांग्रेस, आरएसएसवादी भाजपा और सपा आदि उनकी हितैषी नहीं बल्कि उनके ’आत्म-सम्मान और स्वाभिमान मूवमेन्ट’ की राह में बाधा हैं, जबकि अम्बेडकरवादी बीएसपी उनकी सही- सच्ची मंजिल है, जो उन्हें ’माँगने वालों से देने वाला शासक वर्ग’ बनाने हेतु संघर्षरत, यही आज के दिन का संदेश।”
मायावती ने लिखा, “देश में करोड़ों लोगों के लिए गरीबी, बेरोजगारी और जातिवादी द्वेष, अन्याय- अत्याचार का लगातार तंग और लाचार जीवन जीने को मजबूर होने से यह साबित है कि सत्ता पर अधिकतर समय काबिज रहने वाली कांग्रेस और भाजपा आदि की सरकारें न तो सही से संविधानवादी रही हैं और न ही उस नाते सच्ची देशभक्त।”

कांशीराम ने ‘चमचा युग’ किताब लिखकर खोल दी थी राजनेताओं की पोल

80 के दशक में एक किताब बाजार में आई, जिसने न केवल भारतीय राजनीति में दलितों के पहलुओं पर बात की, बल्कि कई दलित नेताओं की पोल को भी खोलकर रख दिया। इस किताब में जिस शब्द का सबसे अधिक बार इस्तेमाल किया गया वह था ‘चमचा’, किताब का नाम था ‘चमचा युग’ और इसे लिखा था बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम ने।
बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक और समाज सुधारक कांशीराम की 9 अक्टूबर को पुण्यतिथि है। आइए जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ अनसुने पहलुओं के बारे में।

Kanshi Ram Death Anniversary

पंजाब के रोपड़ जिले में हुआ था कांशीराम का जन्म

कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले में हुआ था। बताया जाता है कि कांशीराम जब पुणे की गोला बारूद फैक्ट्री में नियुक्त हुए थे, तो उस दौरान उन्हें पहली बार जातिगत आधार पर भेदभाव झेलना पड़ा। इस घटना का उनके जीवन पर गहरा असर पड़ा और उन्होंने साल 1964 में दलितों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी। वह बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की किताब “एनीहिलिएशन ऑफ कास्ट” से काफी प्रभावित हुए। शुरुआत में तो उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) का समर्थन किया, मगर बाद में इससे उनका मोहभंग हो गया।

‘चमचा युग’ किताब ने बटोरीं थी काफी सुर्खियां

साल 1971 में उन्होंने अखिल भारतीय एससी, एसटी-ओबीसी और अल्पसंख्यक कर्मचारी संघ की स्थापना की। साल 1978 में यह बामसेफ बन गया, इसका उद्देश्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों और अल्पसंख्यकों के शिक्षित करना था। हालांकि, पार्टी की स्थापना से पहले ही उनकी किताब ‘चमचा युग’ ने काफी सुर्खियां बटोरीं। उन्होंने इस किताब में कई बड़े दलित नेताओं को चमचा बताया। उन्होंने तर्क दिया कि दलितों को अन्य दलों के साथ काम करके अपनी विचारधारा से समझौता करने के बजाय अपने स्वयं के समाज के विकास को बढ़ावा देने के लिए राजनीतिक रूप से काम करना चाहिए।

कांशीराम ने रखीं थी बसपा की नींव

उन्होंने 1984 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की नींव रखी। उन्होंने अपना पहला चुनाव साल 1984 में छत्तीसगढ़ की जांजगीर-चांपा सीट से लड़ा था। लेकिन, बसपा को बड़ी सफलता उत्तर प्रदेश में मिली। साल 1991 के आम चुनाव में कांशीराम और मुलायम सिंह ने गठबंधन किया और कांशीराम ने इटावा से चुनाव लड़ा और बड़ी जीत दर्ज की।

होशियारपुर से जीतकर दूसरी बार संसद पहुंचे थे कांशीराम

इसके बाद कांशीराम ने 1996 में होशियारपुर से 11वीं लोकसभा का चुनाव जीता और दूसरी बार लोकसभा पहुंचे। कांशीराम ही थे, जिन्होंने मायावती को राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया। अपने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए साल 2001 में मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। उत्तर प्रदेश में जितनी बार भी बसपा की सरकार बनी, उन्होंने खुद को आगे बढ़ाने के बजाए मायावती को ही आगे किया।

कांशीराम ने दलित समाज के हित में काम करने का उठाया था बीड़ा

कांशीराम को बहुजन नायक, मान्यवर या साहेब जैसे कई नामों से जाना गया। 20 सदी के अंतिम दशक में कांशीराम भारतीय राष्ट्रीय राजनीति में एक ऐसा चमकता हुआ सितारा बन गए, जिन्होंने दलित समाज के हित में काम करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने मायावती को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनवाया, मगर खुद कभी कोई पद नहीं लिया। दलितों के नायक कांशीराम ने 9 अक्टूबर 2006 को इस संसार को अलविदा कह दिया।

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