देश में हिंदु-मुस्लिम एकता पर भी मौलाना कल्बे सादिक ने हमेशा जोर दिया है। इतना कि उन्होंने एक बार कहा था कि यदि देश में हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए उन्हें हरिद्वार के गंगा में भी स्नान करना पड़े, तो वह करेंगे। अयोध्या विवादित जमीन के मुद्दे को सुलझाने के लिए 90 के दशक में वो बाबरी मस्जिद की जमीन को राममंदिर के लिए देने के लिए तैयार थे, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बाकी लोग इससे सहमत नहीं थे। बावजूद इसके कल्बे सादिक रुके नहीं, और समस्या को सुलझाने का प्रयास करते रहे।
संवेदनशील मुद्दों पर भी वह अपनी बेबाक राय रखते थे। असहमति के लिए भी वह स्वर बुलंद करते थे, लेकिन सलीके से व संविधान के दायरे में रहकर। सभी धर्मों में एकता लाने की भरसक कोशिश करने वाले कल्बे सादिक को इस्लामिक देशों में ही नहीं बल्कि इंग्लैंड व अमेरिका जैसे देशों में भी सुनने वालों की कमी नहीं थी। संवाद की बात हो तो किसी मंच को साझा करने से वह गुरेज नहीं करते थे। विदेशों में उन्होंने भारत की कई दफा तारीफ की। पाकिस्तान हो या चीन को जवाब देने की बात हो, मौलाना हमेशा मुल्क के अव्वल नंबर के पैरोकार बनकर उभरे।
कल्ब सादिक शिक्षा, खासतौर पर लड़कियों व निर्धन बच्चों की शिक्षा के लिए हमेशा सक्रिय रहे। यह भी कहा जाता है कि मौलना कल्बे सादिक उर्दू बोलने वाले दुनिया के सबसे बड़े शिया धर्मगुरु थे। उन्होंने शुरुआती तालीम मदरसा नाजमिया से हासिल की। सुल्तानुल मदरिस से उन्होंने डिग्री हासिल की। लखनऊ यूनिवर्सिटी से स्नातक किया, फिर अलीगढ़ से एमए व पीएचडी किया। यूनिटी कालेज और एरा मेडिकल कालेज के संरक्षक भी थे।