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पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्साहिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संपत्ति (Ancestral Property) को पैतृक और स्वअर्जित दो श्रेणियों में बांटा गया है। पैतृक संपत्ति वह संपत्ति है, जिनका चार पीढ़ियों से कोई बंटवारा नहीं हुआ है। ऐसी सभी प्रॉपर्टीज पर संतानों (बेटे और बेटियों) का जन्मसिद्ध अधिकार होता है।
पिता अपनी स्वअर्जित संपत्ति मर्जी से किसी को (बेटे-बेटी) भी दे सकता है। स्वअर्जित संपत्ति मतलब अगर पिता ने खुद की कमाई से मकान बनवाया है या फिर खरीदा है तो वह जिसे चाहे संपत्ति दे सकता है। पिता ने अगर अपनी स्वअर्जित संपत्ति बेटे को दे दी तो बेटी उस संपत्ति पर दावा नहीं कर सकती है।
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पिता की मौत होने की दशा मेंवसीयत लिखने से पहले अगर पिता की मौत हो जाती है तो उसकी संपत्ति पर सभी उत्तराधिकारियों का समान अधिकार होता है। इसमें मृतक की विधवा पत्नी, बेटे और बेटियों का बराबर का हक होता है।
वर्ष 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद अब विवाहित बेटियों का भी पिता की संपत्ति पर पूरा अधिकार है। पहले विवाहित बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबर का हकदार नहीं माना जाता है। अब बेटियों का पिता की संपत्ति पर बेटों के बराबर बेटियों का हिस्सा है।
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..तो बेटियों का संपत्ति में नहीं होगा हिस्सा9 सितंबर, 2005 को हिंदू उत्तराधिकार कानून में संशोधन से पहले अगर पिता की मृत्य हो गई है तो पैतृक संपत्ति में बेटियों का कोई अधिकार नहीं होगा। लेकिन अगर इसके बाद पिता की मृत्यु हो गई है तो बेटियों का पिता की संपत्ति पर बेटों के बराबर का अधिकार है।
राजस्व संहिता संशोधन विधेयक के बाद अब अविवाहित पोतियों और भतीजियों का भी संपत्ति पर अधिकार है। संशोधन से पहले विवाहित बेटे की मृत्य हो जाने की दशा में दादा की संपत्ति पर पोतों का अधिकार होता था, पोतियों का नहीं। इसी तरह नि:संतान व्यक्ति की मौत भाई से पहले होने पर संपत्ति में भाई के बेटे (भतीजे) का अधिकार था, बेटी (भतीजी) को नहीं। अब उत्तराधिकारियों की लिस्ट में पोतियों और भतीजियों का नाम भी जोड़ दिया गया है।