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लखनऊ

विधानसभा सचिवालय में फर्जीवाड़ा- दो साल से चल रहा था उपनिदेशक का फर्जी दफ्तर, किसी को नहीं चला पता

उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय में दो पिछले करीब दो साल से उपनिदेशक के पद पर फर्जी नौकरी की जा रही

लखनऊJun 16, 2020 / 10:35 am

Karishma Lalwani

विधानसभा सचिवालय में भी फर्जीवाड़ा- दो साल से चल रहा था उपनिदेशक का फर्जी दफ्तर, किसी को नहीं चला पता

विधानसभा सचिवालय में भी फर्जीवाड़ा- दो साल से चल रहा था उपनिदेशक का फर्जी दफ्तर, किसी को नहीं चला पता

लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय में दो पिछले करीब दो साल से उपनिदेशक के पद पर फर्जी नौकरी की जा रही है। घंटों मशक्कत के बाद पुलिस ने इस बात की जानकारी जुटाने का प्रयास किया कि दो साल तक बिना किसी को भनक लगे यह फर्जीवाड़ा कैसे चलता रहा। सचिवालय पहुंचे विवेचक एसीपी गोमतीनगर संतोष कुमार सिंह ने तीन कर्मचारियों से सवाल जवाब किए। इस दौरान एसटीएफ से मिली जानकारी के आधार पर दो अन्य कर्मचारियों को भी बुलाया गया लेकिन वह सचिवालय से जा चुके थे और उनके मोबाइल स्विच ऑफ मिले। बता दें कि इस फर्जीवाड़े में शासन के आदेश पर इंदौर निवासी मंजीत भाटिया उर्फ रिंकू की तहरीर पर हजरतगंज कोतवाली में 13 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया था। इस मामले में सात लोगों को गिरफ्तार किया गया है। आरोपियों से पूछताछ के बाद एसटीएफ ने कई तथ्य एसीपी को दिए। इन तथ्यों के आधार पर ही एसीपी ने सोमवार को पड़ताल शुरू की।
आईजी एसटीएफ अमिताभ यश के मुताबिक पशुधन विभाग में 240 करोड़ रुपये के किसी टेंडर के नाम पर फर्जीवाड़े का जाल बुना गया। इसमें मध्य प्रदेश के इंदौर के रहने वाले व्यापारी मंजीत सिंह भाटिया के साथ बेहद सुनियोजित तरीके से धोखाधड़ी की गई। मंजीत को जाल में फंसाने के लिए किसी फिल्म की स्टाइल में पशुधन राज्यमंत्री के निजी सचिव के कमरे का इस्तेमाल किया गया है। यहां तक कि मंजीत को मंत्री की गाड़ी में बिठाकर सचिवालय लाया गया है। निजी सचिव धीरज कुमार देव के कार्यालय को भी फर्जी इुनिदेशक, पशुपालन विभाग एसके मित्तल का कार्यालय बताया गया है। खास बात है कि एसके मित्तल के नाम की तख्ती भी निजी सचिव के कमरे के बाहर लगा दी गई, जिससे शक की कोई गुंजाइश न हो। यहीं पूरी डील तय हुई और मंजीत से ठेका दिलाने के नाम पर 9.72 करोड़ रुपये बारी-बारी ले लिए गए।
15 करोड़ रुपये का हुआ था सौदा

आरोप है कि मंजीत से 15 करोड़ रुपये का सौदा हुआ था। 9.72 करोड़ रुपये मिलने के बाद उसे फर्जी वर्क आर्डर भी थमा दिया गया था। जब मंजीत के सामने इस कारनामे का भांडा फूटा तो उसने अपने पैसे वापस मांगे लेकिन बदले में उसे धमकी मिली। इसके बाद मंजीत ने इस मामले को मुख्यमंत्री तक पहुंचाने का प्रयास किया, जिसके बाद इतने बड़े फर्जीवाड़े में कई आरोपितों के चेहरे बेनकाब हुए। गौरतलब है क‍ि मुख्यमंत्री ने वरिष्ठ अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि मामले की तह तक जाएं और हर दोषी की धड़पकड़ करें, चाहे वह कोई हो। इस मामले में कई और बड़े आरोपितों की गिरफ्तारी तय है।

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