गांजा को बेचने के लिए कोडवर्ड का प्रयोग किया जाता है जिसे सुनने के बाद किसी को शक नहीं होता। यहां तक कि पुलिस भी चकमा खा जाती है। ज्यादातर तस्कर झुग्गी-झोपडिय़ों में रहते हैं और नेपाल बिहार आदि स्थानों से आने वाले गांजा, स्मैक को छोटी-छोटी पान की दुकानों के अड्डे के माध्यम से बेचते हैं। पांच ग्राम की पुडिय़ा पचास से सौ रुपए तक बेची जाती है। जबकि स्मैक को सौ रुपए से दो सौ रुपए तक बेचा जाता है। लगभग यही रेट चरस का भी बाजार में है। इनके ग्राहक बंधे होते हैं, पूरा भरोसा हो जाने के बाद ही दुकानदार ग्राहकों को बेचता है। यहां तक कि दुकानदार अपने नियमित ग्राहकों को पहचान लेता है।
बिहार झारखंड से आता है जोहार
आदिवासी समाज में जोहार शब्द अभिवादन का माना जाता है। लेकिन नशे के कारोबारियों ने इसे गांजा का नाम बना दिया है। अजीबो गरीब नामों से गांजा, स्मैक, चरस बेचा जा रहा है जिसमें कैटरिना, पुष्पा, जोहार, बाहुबली, धूंवा, जहर, गोला, रितिक, पुडिय़ा, ग्रास, मेथी, बूटा, मिठाई, हरौनी आदि नामों से गांजा, स्मैक, चरस उपलब्ध है। इनके क्वालिटी और रेट अलग-अलग होते हैं। ज्यादातर नई उम्र के युवक इसके गिरफ्त में आकर अपने जीवन को बर्बाद कर रहे हैं।