मदद को रात दस बजे पहुंचे ग्रामीण
मुख्य चुनाव आयुक्त के रालम में फंसे होने की सूचना से प्रशासन में खलबली मच गई थी। लेकिन गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं थी। लिहाजा आसपास के ग्रामीण करीब 25 किमी पैदल दूरी तय कर देर रात रालम पहुंचे। उसके बाद उन्होंने मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रहने के लिए गांव में व्यवस्था की। इस खाली गांव में बिजली, सड़क और संचार सेवा नहीं है। गांव के हालात देख सीईसी भी दंग रहे गए। संबंधित खबर:-
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मोदी सरकार में सीमावर्ती गांवों को अंतिम नहीं कहकर पहले गांव के नाम से संबोधित किया जाने लगा है। बावजूद इसके देश के यह पहले गांव केवल नाम तक के लिए ही पहले हैं। विकास के नाम पर यह गांव आज भी देश के अंतिम गांव ही हैं। रालम भी ऐसे ही गांवों में से एक हैं। चीन सीमा के नजदीक बसे इस गांव में प्रतिवर्ष अप्रैल से अक्तूबर प्रथम सप्ताह तक तीन हजार से अधिक लोग माइग्रेट होकर पहुंचते हैं। करीब साढ़े चार माह तक ग्रामीण रालम में ही रहते हैं। पूर्व प्रधान ईश्वर नबियाल बताते हैं कि चार्जेबल एलईडी लाइट लेकर वह अपने घरों को रोशन करते हैं। उनके मुताबिक चीन सीमा से सटा यह गांव मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रहा है।