46 साल से यहां मुस्लिम परिवार करा रहा रामलीला, सलमान-अरबाज बनते हैं राम-लक्ष्मण
लखनऊ. नवरात्रि में रामलीला का अपना महत्व है। राजधानी लखनऊ के बख्शी का तालाब इलाके की रामलीला हिंदु-मुस्लिम एकता की मिसाल है। इस रामलीला में रामायण के ख़ास किरदारों की भूमिका मुसलमान ही निभाते हैं। ये परंपरा यहां पिछले 46 साल से चलती आ रही है। साल 1972 बख्शी का तालाब में रामलीला शुरू कराने की पहल एक मुसलमान ने ही की थी। तत्कालीन प्रधान मैकु लाल यादव व उनके मित्रा मुजफ्फर हुसैन ने इस राम लीला को शुरू किया था।
60 प्रतिशत मुस्लिम कलाकार बक्शी का तालाब में हो रही रामलीला में तो 60 प्रतिशत मुस्लिम कलाकार किरदार निभाते हैं। सबसे ख़ास बात ये है कि इस रामलीला के निर्देशक साबिर खान खुद एक मुसलमान हैं। मोहम्मद साबिर खान बताते हैं कि वह करीब 12 साल से रामलीला में एक्टिंग कर रहे हैं। साबिर खान अब तक जनक, रावण, कुम्भकर्ण और विश्वामित्र का किरदार निभा चुके हैं। इस बार वह राजा दशरथ का किरदार निभाते दिखेंगे।
सलमान बनेंगे राम, अरबाज बनेंगे लक्ष्मण साबिर खान के बेटे सलमान, अरबाज और मोहम्मद शेरखान भी रामलीला का किरदार निभाते हैं। साबिर बताते हैं कि पिछली बार शेरखान ने सीता का किरदार निभाया था। जिसकी जमकर तारीफ़ हुई थी। इस बार सलमान राम बनेंगे तो अरबाज लक्ष्मण। सीता का रोल सुशील कुमार मौर्य करेंगे। साबिर बताते हैं कि राम का किरदार निभाने वाले सलमान अभी 20 बरस के हैं तो वहीं अरबाज 18 बरस के हैं।सलमान ख़ान ने बताया कि “मैं राम की भूमिका कई साल से कर रहा हूँ, इसलिए कई जानने वाले भी मुझे राम के नाम से ही पुकारने लगे हैं। मैं राम बनता हूँ और रावण एक हिन्दू बनता है तो लोगों को ये कॉम्बिनेशन बहुत अच्छा लगता हैं”।
1992 में आया था संकट बख्शी का तालाब निवासी मंसूर अहमद के मुताबिक, बख्शी का तालाब रमालीला कमेटी के सामने एक बड़ा संकट 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद आ गया था। वे कहते हैं, “रामलीला के मंचन पर संदेह हो रहा था। उस वक़्त लोगों का कहना था कि कमेटी के सदस्य ख़ुद आगे आएं और रामलीला करवाएं।मंसूर अहमद बताते हैं कि ऐसा ही हुआ और 1993 में रावण की भूमिका उन्होंने ख़ुद ही निभाई थी।
हिंदु-मुस्लिम एकता की मिसाल 48 साल के नागेंद्र सिंह चौहान 1982 से बख्शी रामलीला से जुड़े हैं। उन्होंने बताया, “मुज़फ़्फ़र हुसैन जी ने बख्शी का तालाब में इसलिए भी रामलीला शुरू की क्योंकि वहां के लोगों को रामलीला देखने के लिए 25 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था”। बख्शी का तालाब की रामलीला दशहरे के दिन से शुरू होती है और तीन दिनों चलती है। मंसूर ख़ान के मुताबिक, उनके पिताजी हिन्दू-मुस्लिम एकता की एक मिसाल पेश करना चाहते थे। ये रामलीलाल न सिर्फ लखनऊ बल्कि पूरे प्रदेश भर में मशहूर हैं। विदेशी भी अगर दशहरा के आस-पास लखनऊ आते हैं तो इस रामलाली को देखते हैं।
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