20 फीसद मुस्लिम- 22 फीसद दलित आजमगढ़ संसदीय सीट मुस्लिम-यादव बहुल है। ये दोनों समुदाय सपा के परंपरागत वोट माने जाते हैं। यादव-मुस्लिम की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है। इसके अलावा दलित 22, गैर यादव ओबीसी 21 और सवर्ण 17 फीसदी है। इसी का नतीजा है कि आजमगढ़ में सपा और बसपा का दबदबा कायम है। इस बार बसपा सुप्रीमो मायावती इसी गणित को भुनाना चाहती हैं।
मुस्लिम-दलित समीकरण पर बसपा का जोर राजनीति के जानकार पंड़ितों का मानना है कि, बसपा सुप्रीमो मायावती आजमगढ़ में करीब 20 फीसद मुस्लिम और 22 फीसद दलितों की जुगलबंदी कराकर यूपी की राजनीति में फिर से अपनी दखल बनाना चाहती हैं। बसपा सुप्रीमो की रणनीति है कि, अगर मुस्लिम-दलित एकजुट हो जाएं तो उपचुनाव में कामयाबी बसपा के कदम चूमेंगी। और फिर यह फार्मूला आने लोकसभा चुनाव में काम करेगा।
मुकाबला तगड़ा है वैसे सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने इस सीट पर अपने भाई धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा है। भाजपा ने अपने पिछले चुनाव के प्रत्याशी दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ पर एक बार फिर दांव खेला है। कांग्रेस उपचुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। तो अब मुकाबला भाजपा, सपा और बसपा के बीच है। आजमगढ़ सपा की खास सीट है। तो अखिलेश इसे बचाने के लिए एड़ी जोर लगा देंगे। भाजपा, सपा का दंभ तोड़ना चाहेगी। और जीतने के लिए अपने सारे दांव प्रयोग करेगी। बसपा मुस्लिम-दलित के समीकरण के आधार पर चुनाव लड़ रही है। मुकाबला रोचक हो गया है।