प्रयागराज के चकिया निवासी अतीक के पिता फिरोज अहमद तांगा चलाते थे। अतीक का बचपन बेहद गरीबी में बीता। तांगे से ज्यादा अच्छी आमदनी नहीं होती थी। अतीक ने घर में गरीबी देखी थी। दसवीं फेल अतीक पैसा और नाम कमाने के चक्कर में जरायम की दुनिया की ओर बढ़ गया। उसे सबसे पहले चांद बाबा ने ही सपोर्ट किया। चांद बाबा के गैंग में ही रहकर अतीक ने अपनी पहचान बनाई।
चांद बाबा के खौफजदा रहते थे पुलिसवाले
इलाहाबाद में उन दिनों गैंगस्टर शौक इलाही उर्फ चांद बाबा का खौफ चरम पर था। इस खौफ के चलते पुलिस भी चौक और रानीमंडी की तरफ़ नहीं जाती थी। उस समय तक अतीक 20-22 साल का हो गया था और उसे ठीक-ठाक गुंडा माना जाने लगा था। पुलिस और नेता, दोनों ही उसे शह दे रहे थे। दोनों ही चांद बाबा के खौफ को खत्म करना चाहते थे। इसी का नतीजा था अतीक़ का उभार, जो आगे चलकर चांद बाबा से ज़्यादा पुलिस के लिए खतरनाक हो गया।
चांद बाबा और पुलिस ने नासूर बन गया था अतीक
जैसे-जैसे अतीक़ और उसके लड़कों का नेटवर्क बढ़ा, वह पुलिस के लिए नासूर बनने लगा। अतीक़ को इस बात की भनक लग गई कि पुलिस उसे मिटाना चाहती है। उसने एक पुराने मामले में जमानत तुड़वाकर सरेंडर कर दिया। जेल जाते ही पुलिस उस पर टूट पड़ी। उसपर रासुका लगाया गया। एक साल बाद अतीक जेल से बाहर आया और पुलिस के जुल्म की कहानी बताकर सहानुभूति का फायदा उठा लिया। यहीं से शुरू हुआ अतीक के खूंखार बनने का सफर।
अपनी सुरक्षा पुख्ता करने के लिए अतीक ने चुना सियासत का रास्ता
अतीक अहमद को समझ आ चुका था कि अब पुलिस से बचने के लिए सियासत ही काम आ सकती है। हुआ भी ऐसा ही। 1989 में यूपी में विधानसभा के चुनाव हुए। इसमें अतीक ने इलाहाबाद पश्चिमी सीट से निर्दलीय पर्चा भर दिया। इस चुनाव में उसका सामना उसके ही गुरु चांद बाबा से था। चांद बाबा और अतीक में दुश्मनी के साथ पहले गैंगवार हो चुकी थी। अपराध जगत में अतीक़ का बढ़ता दबदबा चांद बाबा को अखर रहा था।
यही कारण था कि चांद बाबा ने सीधी चुनौती दी। काउंटिंग वाले दिन, अतीक अहमद अपने गुर्गों के साथ रोशनबाग़ में चाय की टपरी पर था। चांद बाबा अपनी गैंग के साथ आया, और, दोनों के बीच भीषण गैंगवार हुई। गोलियां, बम, बारूद से बाज़ार पट गया। इसी गैंगवार में चांद बाबा की मौत हो गई। चांद बाबा की हत्या पर प्रशासन ऐक्शन लेता या चांद बाबा के गुर्गे, इससे पहले ही चुनाव के रिजल्ट घोषित हो गए। अतीक़ अहमद विधायक चुन लिया गया।
इसके बाद कुछ ही महीनों में एक-एक करके चांद बाबा का पूरा गैंग खत्म हो गया। इस हत्या में अतीक़ अहमद पर कोई मुक़दमा दर्ज नहीं हुआ और चांद बाबा की मौत के पीछे गैंग की मुठभेड़ को कारण बताया गया था। चांद बाबा की हत्या के बाद अतीक़ का ख़ौफ़ इस क़दर फैला कि लोग इलाहाबाद पश्चिमी सीट से टिकट लेने से ख़ुद ही मना कर देते थे।
यही कारण था कि निर्दलीय रहकर अतीक़ ने 1991 और 1993 के चुनाव जीते। फिर सपा से नजदीकी बढ़ी, तो 1996 में सपा से टिकट मिल गया। चुनाव लड़ा और चौथी बार विधायक बना। 1999 में अपना दल का हाथ थामा। 2002 में अपना दल से अपनी पुरानी सीट से चुनाव लड़ा और 5वीं बार इलाहाबाद पश्चिमी सीट से विधानसभा में पहुंच गया।