इस घोटाले के खुलासे के बाद नगर निगम में हड़कंप मचा हुआ है। हालांकि नगर निगम ने इस मामले को लेकर निजी एजेंसियों के खिलाफ अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं करायी है। नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी को खुद इस घोटाले की जानकारी है। उन्होंने एक पत्र में खुद इस बात को स्वीकार किया है कि सफाई कर्मचारियों के ईपीएफ के लिए दी जा रही 29% रकम उनके खातों में नहीं जमा हुई है और इसका गबन हुआ है। बावजूद इसके उन्होंने न तो किसी एजेंसी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है और न ही उन्हें ब्लैक लिस्ट किया है। नगर निगम के सूत्रों का कहना है कि निगम के अधिकारी इसलिए इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे हैं क्योंकि कई एजेंसियां नगर निगम के अधिकारियों, कर्मचारियों के रिश्तेदारों के नाम पर हैं। कुछ एजेंसियां पार्षदों के रिश्तेदारों की हैं तो कुछ अन्य एजेंसियां दूसरे प्रभावशाली लोगों की हैं। नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में तैनात एक बड़े बाबू की खुद की तीन एजेंसियां है। इनमें से एक को हटाया गया था जबकि दो अभी भी काम कर रही हैं।
32 एजेंसियां करती हैं मैन पावर सप्लाई आपको बता दें कि फिलहाल नगर निगम में मैन पावर सप्लाई करने वाली कुल 32 एजेंसियां काम कर रही हैं। यह एजेंसियां नगर निगम को सफाई कर्मचारी सप्लाई कर रही हैं। इन्हीं 32 एजेंसियों ने नगर निगम के अफसरों के साथ मिलकर यह घोटाला किया है। केवल 2 वर्ष में ही इन सभी ने 64.32 करोड रुपए पर हाथ साफ किया है। नगर निगम के सूत्र बताते हैं अगर विस्तार से जांच हो गई तो यह 200 करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला निकलेगा।