scriptगेहूं की फसल में जिंक की कमी ने बढ़ाई धरती पुत्रों की चिन्ता, अधिकारियों ने बताए लक्षण, कारण और समाधान | Zinc deficiency in wheat crop has increased the concern of the sons of the soil, officials told the symptoms, causes and solutions | Patrika News
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गेहूं की फसल में जिंक की कमी ने बढ़ाई धरती पुत्रों की चिन्ता, अधिकारियों ने बताए लक्षण, कारण और समाधान

पौधों की वृद्धि बाधित होने से उनकी ऊंचाई सामान्य से कम हो जाती है। पत्तियों का रंग हल्का पीला हरा हो जाता है। विशेषकर निचली पत्तियों पर भूरे या झुलसे हुए रंग की धारियां और धब्बे बन जाते हैं और फसल पकने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

कोटाJan 06, 2025 / 11:45 am

Akshita Deora

गेहूं की फसल में इन दिनों जिंक की कमी के लक्षण नजर आने लगे हैं। इससे धरतीपुत्रों की चिन्ता बढ़ गई हैं। यह न केवल फसल की उत्पादकता बल्कि गुणवत्ता को भी प्रभावित कर रही है। जिंक की कमी से पौधों की शारीरिक और जैव रासायनिक प्रक्रियाओं में बाधा उत्पन्न होती है। इससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। गौरतलब है कि जिले में इस बार गेहूं की बुवाई 1 लाख 40 हजार 150 हैक्टेयर में हुई है।

पत्तियों पर हो जाती है धारियां व धब्बे

जिंक की कमी से गेहूं के पौधों में खासतौर पर बौनापन, पर्णहरित की कमी, पत्तियों पर धारियां और धब्बे तथा देर से परिपक्वता में कमी जैसे लक्षण नजर आते हैं। पौधों की वृद्धि बाधित होने से उनकी ऊंचाई सामान्य से कम हो जाती है। पत्तियों का रंग हल्का पीला हरा हो जाता है। विशेषकर निचली पत्तियों पर भूरे या झुलसे हुए रंग की धारियां और धब्बे बन जाते हैं और फसल पकने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
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मृदा उपचार के लिए यह जरूरी

समाधान के तौर पर मृदा उपचार, फोलियर स्प्रे मृदा परीक्षण और सिंचाई प्रबंधन को अपनाया जा सकता है। फसल बोने से पहले 21 प्रतिशत जिंक सल्फेट की 5 किलो मात्रा प्रति बीघा मिट्टी में मिलाने से जिंक की स्थायी उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है। बुवाई के 25 से 30 दिन बाद 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट 5 ग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 ग्राम बुझा चूना प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर पत्तियों पर छिड़काव कर सकते हैं। फसल बुवाई से पहले मिट्टी की जांच कराकर पोषक तत्वों की स्थिति के अनुसार उर्वरकों का संतुलित उपयोग करना चाहिए। फसल में नियमित सिंचाई करें और जलभराव से बचें।
जिंक के साथ अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे लोहा, मैंगनीज, तांबे का संतुलित उपयोग फसल की उपज और गुणवत्ता में सुधार करता है। मिट्टी की दीर्घकालिक उर्वरता बनाए रखता है। मृदा में जिंक की मात्रा यदि 0.6 पीपीएम से कम हो, तो यह फसल के लिए हानिकारक हो सकता है। ऐसी स्थिति में 20.25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट का उपयोग करें। 0.6 से 1.2 पीपीएम को मध्यम स्तर माना जाता है, जो फसल की सामान्य वृद्धि के लिए पर्याप्त है।
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जिम्मेदरों का कहना

जिले में गेहूं की फसल में इन दिनों कहीं-कहीं जिंक की कमी के लक्षण नजर आ रहे हैं। जिंक की कमी होने पर किसान मृदा परीक्षण कराएं, ताकि पोषक तत्वों का समुचित प्रबंधन हो सके। फसल की उत्पादकता व गुणवत्ता में सुधार हो सके। किसानों को जिंक की कमी के बचाव बताए जा रहे है।
दिनेश कुमार जागा, संयुक्त निदेशक, कृषि विस्तार चित्तौड़गढ़

जिंक की कमी के लक्षण

जिंक की कमी का मुख्य कारण मिट्टी का उच्च पीएच, अत्याधिक फॉस्फोरस, उर्वरकों का अधिक उपयोग और सिंचाई प्रबंधन नहीं हो पाना है। क्षारीय या चूनायुक्त मिट्टी में जिंक की उपलब्धता कम हो जाती है। और अधिक मात्रा में फॉस्फोरस डालने से जिंक का अवशोषण बाधित होता है। इसके अलावा अधिक या कम पानी की स्थिति जिंक की गतिशीलता को प्रभावित करती है।

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