पीएम मोदी ने भी Indian Politics की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री पर साधी चुप्पी
बड़ा सवाल उठाती स्टेशन मास्टर की हड़बड़ी डित दीनदयाल उपाध्याय 10 फरवरी 1968 के दिन पटना जाने के लिए लखनऊ से सियालदाह एक्सप्रेस में सवार हुए थे, लेकिन पटना पहुंचने के बजाय कुछ घंटे बाद ही उनका पार्थिव शरीर मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास पड़ा मिला। रात में करीब 3.45 बजे मुगलसराय स्टेशन का लीवरमैन दौड़ते हुए सहायक स्टेशन मास्टर के पास आया और रेलवे ट्रैक के दक्षिण में स्टेशन से लगभग 150 यार्ड की दूरी पर इलेक्ट्रिक पोल संख्या 1276 के पास एक व्यक्ति के पड़े होने की सूचना दी। सहायक स्टेशन मास्टर ने जब इसकी सूचना स्टेशन मास्टर को दी तो उसने ट्रैक पर पड़े व्यक्ति की शिनाख्त करने या उसकी स्वास्थ्य पड़ताल किए बगैर तत्काल रेलवे पुलिस को एक मैमो जारी कर दिया… जिस पर लिखा था लगभग मृत। वहीं मुगलसराय रेलवे पुलिस के पास पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु से जुड़ा कोई रिकॉर्ड मौजूद ना होना बड़े षणयंत्र की ओर इशारा करता है।
Indian Politics की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्रीः दीनदयाल उपाध्याय के सीने में दफन था भारतीय राजनीति का बड़ा राज
दावा चोरी के लिए हत्या का, लेकिन सारा सामान साथ मिला पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या यूं ही Indian Politics की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री नहीं बनी। हत्या की वजह का दावा इसके लिए खास तौर पर जिम्मेदार माना जाता है। दीनदयाल उपाध्याय की हत्या के बाद सीबीआई ने मामले की जांच के लिए एक स्पेशल टीम गठित की थी। जिसने पांच दिन बाद ही दावा कर दिया कि उपाध्याय की हत्या चोरी के लिए की गई है। सीबीआई ने घटना के दो सप्ताह बाद राम अवध और भारत लाल नाम के दो लोगों को गिरफ्तार कर दावा किया था कि दोनों लोग दीनदयाल उपाध्याय के कोच में चोरी करने की नीयत से घुसे थे, लेकिन जब उन्होंने उपाध्याय का बैग चुराया तो वह जाग गए और पुलिस के हवाले करने की धमकी देने लगे। इसलिए उन्हें चलती ट्रेन से नीचे फैंक दिया, लेकिन सीबीआई की विशेष अदालत ने भारत लाल को सिर्फ चोरी का दोषी पाया और उसे चार साल की सजा सुनाई। वहीं वाराणसी सेशन कोर्ट ने तो सीबीआई की पूरी थ्योरी को ही खारिज कर दिया, क्योंकि दीनदयाल उपाध्याय का कोई भी सामान चोरी ही नहीं हुआ था।
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5 रुपए के नोट ने उठाए सवाल दीनदयाल उपाध्याय जब रेलवे ट्रैक से उठाकर मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर लाया गया तो उनके हाथ में पांच का नोट लगा हुआ था। मधु शर्मा सवाल उठाती हैं कि चोरों से लड़ रहा शख्स हाथ में रुपए क्यों लेगा? उससे भी बड़ी बात यह है कि पुलिस और रेल कर्मचारियों से लेकर डॉक्टरों तक ने दीनदयाल उपाध्याय को पहचाना ही नहीं, जबकि मृत्यु के बाद जब शव मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर लाया गया तो भीड़ने उन्हें पहचान लिया?
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कोटा में जान दे रहा था लहसुन किसानसीआईडी और सीबीआई की रिपोर्ट में बदल गया मौत का समय केंद्र सरकार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या की जांच करने के लिए जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में पंडित दीनदयाल की हत्या के पीछे किसी भी राजनीतिक साजिश से साफ इन्कार कर दिया था, लेकिन चंद्रचूड़ कमेटी यह नहीं बता सकी कि दीनदयाल उपाध्याय के हाथ में 5 रुपए का नोट क्यों था और वह अपने कोच के गेट पर खड़े होकर क्या कर रहे थे? अगर चोरों ने उनकी हत्या की तो हाथ में पहनी हुई घड़ी और उनका बैग क्यों नहीं चुराया? इतना ही नहीं सीआईडी और सीबीआई रिपोर्ट में दीनदयाल उपाध्याय की मौत का समय अलग-अलग क्यों था? मधु शर्मा बताती हैं कि जब आयोग की रिपोर्ट पर सवाल उठे तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने सार्वजनिक तौर पर खुद स्वीकारा कि जिस स्थित में दीनदयाल उपाध्याय का शव पुलिस को मिला था, उस स्थिति में बिल्कुल भी संभव नहीं है कि उनकी मौत इलेक्ट्रिक पोल से टकराकर हुई है।