रामनवमी विशेष: जिन्हें देवी मान पूज रहे, आज उन्हीं को कर रहे कत्ल
सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन यह सच है। साल में दो-तीन बार खासकर दीपावली के पूर्व मध्यप्रदेश के ऐसे कई परिवार यहां आते हैं जो कीचड़ में सोना तलाशने के लिए पुराने बाजार की गलियों की नालियों की गंदगी को इकठ्ठा करते हैं। इन परिवारों का दावा है कि इससे इनकी साल भर की रोजी-रोटी चलती है। इस समय कस्बे में दो-तीन परिवार कीचड़ निकालने में जुटे हैं। बाकी कोटा- बारां जिलों के बड़े कस्बों में ये फैले हुए हैं।
सर्राफे से शुरू होती है कहानी असल में, सोने के आभूषण की सफाई या नए गहने बनाते समय सोने के सूक्ष्म कण दुकान के फर्श पर गिर जाते हैं। सफाई करते वक्त कण नालियों में चले जाते हैं और कीचड़ में दब जाते हैं। साल में करीब चार बार ये परिवार नाली से सोना निकालने यहां आते हैं। जहां नाली की ढलान खत्म होती है, वहां ये लोग स्वर्ण कण तलाशते हैं।
ऐसे करते हैं शोधन
कीचड़ से सोने के कण निकालने के लिए नालियों में जमा कीचड़ को धोते हैं। कीचड़ साफ होने पर उसमें कंकड़-पत्थर व अन्य चीजों के अवशेष रह जाते हैं। इन्हें समेटकर ये अपने साथ ले जाते हैं। फिर इसे पहले चूने व बाद में तरल तेजाब से धोते हैं। इससे गंदगी में सोने-चांदी की मात्रा का अनुमान लग जाता है। बाद में इसमें मरकरी डाली जाती है, इससे सोना चमकने लगता है और उसे ये अलग कर लेते हैं।
इसी से गुजारा
यहां पुराना बाजार में नाली से कीचड़ की सफाई कर रहे युवक मलिन व तेजराज ने बताया कि वो परिवार के साथ यहां आते हैं। अभी बारां में डेरा डाल रखा है। कीचड़ समेटकर वहीं ले जाएंगे और शोधन करेंगे। वे कहते हैं कि इस काम में उन्हें परेशानी तो होती है लेकिन आजीविका का कोई जरिया नहीं है। इससे जो पैसा मिलता है उससे सालभर परिवार चलता है। स्थानीय स्वर्णकारों के अनुसार यह विशेष कारीगरी है। इसके लिए काफी प्रशिक्षण की जरूरत पड़ती है।